वेनिस का बाँका/दशम परिच्छेद

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दशम परिच्छेद।

माटियो के मारे जाने के द्वितीय दिवस डाकुओं ने अपने गृह के कपाट और पक्षकों को ब्योंड़ों और श्रृंखलो द्वारा अत्यन्त दृढ़ता के साथ बंद किया। वह दिवस उनका अत्यन्त चिन्ता और व्यग्रता में बीता। भय [ ५५ ]की सुन्दरता के कारण इस समज्या की शोभा थी परिहास करते, कभी नववयस्कोंके साथ जो नृत्यायतन में भाँति भाँति के स्वरूप भर कर आते थे बार्तालाप करते, कभी वेनिस के बिख्यात मुख्यसेनाध्यक्षों और अपने सैनिक अधिकारियों के साथ शतरंज खेलते, और कभी सब कामों को छोड़ रोजाबि- लाका नृत्य देखते, अथवा चुपचाप उसका मधुरगान सुनते और मनही मन प्रसन्न होते।

नृपतिराजके तीनों एकांत मित्र और सचिव अर्थात् लोमे- लाइनो, कुनारी, और पेलोमानफ्रोन, श्वेतश्मश्रु और धवल केश होने पर भी युवास्त्रियों के समूह में जामिलते प्रत्येक से परिहास और बिलास की बातें करते और अत्यन्त प्रसन्न मनसे उनकी बातों का उत्तर देते।

यथावसर महाराज एक सुसज्जित आयतन में जा बैठे, संयोगवश अपनी सहोदर सुता रोजाबिला से बातें कर रहे थे, कि लोमिलाइनो प्रविष्ट हुआ। नृपतिपुंगवने परम उत्सुकता और हर्ष से कहा 'क्यों लोमिलाइनो आज तो तुम्हारा चित्त उस दिवस की अपेक्षा भी अधिक आनन्दित है जबकि हमलोग स्काटडोना के अभिमुख पड़े हुये थे और उसी दिन तुरुष्कों से घोर संग्राम होने की आशंका थी।"

लोमेलाइनो―"निस्सन्देह महाराज! मैं इस को अस्वीकार नहीं कर सकता। मुझे अद्यावधि जब कभी उस भयंकर यामिनीका ध्यान बंधता है जब कि हम लोगों ने स्काटडोना को विजय किया था और तुरुष्कों से उनकी ध्वजादि छीनली थी, तो एक प्रकार के भय सम्मिलित हर्षका उद्रेक होता है। अहा! उस दिन वेनिस के वीराग्रगण्य कैसा प्रमत्त केहरि समान लड़े॥"

अंड्रियास―"मेरे प्राचीन बीर धुरंधर! इस पानपात्रको [ ५६ ]उनके स्मरण में भर कर पी―तूने यह सुख अपना रुधिर प्रवा- हित कर प्राप्त किया है॥"

लोमेलाइनो―"निस्सन्देह महाराज! मुख्याति लाभ करने में ऐसाही स्वाद है परन्तु सच पूछिये तो आपहीकीं अनुकंपा से मैंने सुयश लाभ किया और आपही के कारण से यह सुख्याति प्राप्त की। संसार में कोई जानता नहीं कि लोमे- लाइनो कौन है यदि वह डालमेशिया और सिसिलिया में प्रख्यात अंड्रियास की ध्वजाके नीचे न लड़ा होता। और वेनिस को सदैव स्मरणीय बनाने के लिये विजय के चिन्हों को एकत्र करने में सहायता न की होती॥"

अंड्रियास―"मेरे अच्छे लोमेलाइनो! पुर्तगाल की मदिराने तुमारे विचारों की वृद्धि कर दी है॥"

लोमेलाइनो―"महाराज! मैं भली भांति जानता हूँ कि मुझे आप के सामने इस प्रकार आप की प्रशंसा करनी न चाहिये परन्तु बिश्वास कीजिये कि अब मेरा समय स्तुति करने का नहीं रहा। यह काम तो मैं नवयुवकों को समर्पण करता हूँ जिनकी नासिकामें अद्य पर्यंत बारूद की गंध तक नहीं गई है और जो कभी वेनिस और अंड्रियास के लिये रणभूमि में नहीं लड़े॥"

अंड्रियास―"तुम तो हमारे प्राचीन हितैषी हो, परन्तु क्या तुम अनुमान करते हो कि इंगलिस्तानाधिपति की भी तुमारी ही सी सम्मति है?"

लोमेलाइनो―"मेरे जान तो यदि पंचम चार्ल् सको उसके सभासदोंने भ्रान्त बना रक्खा हो, अथवा यह अपने आप इतना अभिमानी हो गया हो कि निज शत्रुकी वीरता को जिह्वा पर लाते लज्जित होता हो, तबतो दूसरी बात है, नहीं तो उसे अवश्य कहना पड़ेगा कि मे दिनी पृष्ठ पर एकही पुरुष ऐसा है जो मेरा [ ५७ ]सामना कर सकता है और जिससे मैं भीत रहता हूँ और वह कौन है कि अंड्रियास!"

अंड्रियास―"मुझे ऐसा अनुमान होता है, कि जब वह मेरा उत्तर-जो मैंने उसके पत्रका दिया है, जिसमें उन्होंने फ्रांस के भूपति को कारागारबद्ध करने का सम्बाद लिखा था,― सुनेंगे तो अत्यन्त असन्तुष्ट और अप्रसन्न होगे।"

लोमलाइनो―"निस्सन्देह वे रुष्ट होंगे, परन्तु इससे क्या? जब तक अंड्रिआस जीवित है वेनिस को उनकी अप्रसन्नता से क्या भय हो सकता है, परन्तु जब आपके जगद्विजयी वीर निज निज समाधियों में पदप्रसारण पूर्वक शयन करेंगे तो फिर बेचारे वेनिसकी न जाने क्या दशा होगी, मैं सम- झता हूँ कि उस दिन इसके उत्कर्ष का समय समाप्त हो जायगा।"

अण्ड्रियास―"ऐं? क्या हमारे यहाँ बहुत से होनहार नवयुवक सैनिकाधिकारी नहीं हैं?"

लोमेलाइनो―"हन्त! उन लोगों की अवस्था आप क्या पूछते हैं, बहुतेरे उनमें से नायिकाओं के प्रेमकी मादकता में चूर हैं, कितनोंने मदिरा की भट्टियाँ लुढ़काने में योग्यता लाभ की है, और प्रायः निरे सुकुमार और कोमल हैं, परन्तु मैं क्या कहने आया था और भूल कर क्या कह रहा हूँ। सच है यदि वृद्ध मनुष्य हो और अंड्रियास से बातें करता हो तो उसके लिये मतलब का बात का भूल जाना सुगम है। सुनिये महराज! मैं आप के निकट कुछ निवेदन करने आया हूँ और एक अत्यन्त आवश्यक बात के विषय में।"

अंड्रियास―"तुम्हारे इस प्रकार कहने से तो मेरी उत्सु- कता बढ़ गई।"

लोमेलाइनो―"लगभग एक सप्ताह होता है कि यहाँ [ ५८ ]प्लारेसका एक कुलीन युवक फ्लोडोआडौं नामक आया है। उसके मुखड़े से कुलीनता और भलमनसाहत टपकती है, और उसे देखने से सिद्ध होता है कि वह होनहार है।"

अंड्रियास―"अच्छा फिर?"

लोमेलाइनो―"इसके जनक मेरे परम मित्र थे परन्तु उन का देहान्त हो गयो, अहा! कैसे सद्व्यक्ति थे कि होना कठिन है, युवावस्था में हम दोनों एकही पोत पर कार्य करते थे, और उन्होंने बहुत से तुर्कों को धूल में मिलाया था, हाय! क्या ही वीर मनुष्य थे।"

अंड्रियास―"वाह! बापकी प्रशंसा की उमंग में तो तुम बेटे को सर्वथा भूल गये।"

लोमेलाइनो―"उनका बेटा वेनिस में आया है और महा- राज की सेवा करने की कामना रखता है। मैं विनय करता हूँ कि आप उसे किसी उच्च और माननीय पद पर नियुक्त करें, क्योंकि वह ऐसा पुरुष निकलेगा कि हम लोगों की मृत्यु हो जाने के उपरांत वेनिस वाले उस पर गर्व करेंगे, इस बात के लिये मैं अपने जीवन की शपथ करता हूँ।"

अण्ड्रियास―"वह कुछ मतिमान और योग्य भी है।"

लोमिलाइनो―हाँ! यह सद्गुण उसमें विद्यमान हैं और वह हृदय भी अपने पिता के सदृश रखता है, तनिक महाराज उसे बुलाकर बात चीत करें, वह सामने वाले आयतन में जहाँ लोग रूप बदल कर एकत्र हैं उपस्थित है। उसकी कामनाओं में से एकको मैं निदर्शन की भांति आप से वर्णन करता हूँ। उस ने डाकुओं का समाचार जिन्होंने सम्पूर्ण वेनिस को अस्त व्यस्त और व्यग्र कर रक्खा है सुना है और वह इस बातका प्रण- करता है कि प्राथमिक सेवा मैं जो इस राज्यकी करूँगा वह [ ५९ ]यह होगी कि उन डाकुओं को जो अब तक पुलीस को भी कूआ झकाया किये हैं पकड़वा दूँगा।"

अंड्रियास―"अजी यह बात तो कहने की है, कर दिखाना बहुत कठिन है। अच्छा, तुमने उसका नाम फ्लोडोपाडों न बताया था? उससे जाकर कहो कि मैं उससे बात करना चाहता हूँ।"

लोमीलाइनो―"अच्छा, मेरा आधा अभिप्राय तो सिद्ध हुआ, बरन पूरो कहना चाहिये क्योंकि फ्लोडोआर्डो को एक बार अवलोकन करना और उसे स्वीकार न करना उतना ही कठिन है जितना कि स्वर्ग को देखना और उसमें बैठने की अभिलाषा न करना। किसी मनुष्य के लिये फ्लोडोआर्डो पर दृष्टिपात कर उसे न पसन्द करना, उतना हीं असंभव है जितना कि अक्षहीन के लिये उस व्यक्ति से घृणा करना जिसने उसके चक्षुत्रों की फूली को निवारण कर दिया हो और उसको प्रकाश और प्राकृतिक वस्तुओं की सुन्दरता देखने की शक्ति प्रदान की हो।"

अंड्रियास―(मुसकरा कर) "जब से लोमेलाइनो हमारी और तुम्हारी भेंट है किसीके विषय में मैंने कभी तुमको इतना उत्तेजित नहीं पाया। अच्छा जाओ इस बिचित्र पुरुष को यहाँ लाओ।"

लोमिलाइनो―"महाराज! अभी लाया, परन्तु राजनंदिनी तुम भली भांति सावधान रहना, मैं द्वितीय बार तुमको जताये देता हूँ कि अपने को सँभाले रहना।"

रोजाबिला―"परमेश्वर के लिये लोमिलाइनो उसे यहाँ शीघ्र लाओ। तुमने मेरी उत्सुकता की भी अधिक वृद्धि कर दी है।

लोमिलाइनो―आयतन से बाहर गया! [ ६० ]अंड्रियास-―क्यों बेटी तुम नृत्य करने में क्यों नहीं योग देतीं!

रोजाबिला―एक तो मैं थक गई हूँ और दूसरे इस इच्छो से यहाँ ठहरी हूँ कि तनिक देखूँ तो कि यह व्यक्ति फ्लोडो आर्डो जिसकी लोमेलाइनोने इतनी प्रशंसा की, कौन है और कैसा है। कहिये तो पिताजी मैं सच कह दूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं उसे जानती हूँ। मैंने अभी एक पुरुष यूनो- नियों की प्रणाली का अवलोकन किया है, जिसका ढंग इतना निराला था कि वह उस समारोह में मिल न सकता था, तनिक मी ज्ञानपात्र मनुष्य उसे सहस्त्रो से पृक कर सकता है वह पुरुष एक दुबला पतला लाँबा सजीला युवा पुरुष है जिसकी चाल ढाल से सुन्दरता की भी पराकाष्ठा होती है।

अण्ड्रियास―(मुसकुराकर और अपनी उँगुलियों से धम- काकर) "बेटी! बेटी!!"!

रोजाबिला―नहीं ममपूज्य पितृव्य! जो कुछ मैंने कहा वह केवल सत्यता और न्याय की दृष्टि से था, संभव है कि वह पुरुष जो यूनानी परिच्छद धारण किये था और फ्लोडो दो पुरुष हों परन्तु लोमेलाइनो के वर्णन के अनुसार-महोदय! यह देखिये तनिक अभिमुख अवलोकन कीजिये वह यूनानी खड़ा है।

अण्ड्रियास―और लोमेलाइनो भी उसके साथ हैं दोनों आते हैं। प्यारी रोजाबिला तुमारा अनुमान बहुत ठीक उत्तरा!।

भूमिनाथ की बात समाप्त भी न होने पाई थी कि लोमेला- इनो एक लम्बी डील के युवक को जो उत्तम यूनानी परिच्छद धारण किये था साथ लिये हुए आपहुँचा॥

लोमेलाइनो―महारोज! कौंट फ्लोडोआर्डो आप के समक्ष [ ६१ ]विद्यमान है और महाराज के पदपाथोज परिसेवन में लगे रहने के लिये निवेदन करता है।

फ़्लोडोपोंने अपनी टोपी सन्मान रक्षा के लिये उतार ली, बहरूप को निवारण किया, और बेनिस के विख्यात शोसक के सम्मुख शिर झुकाया।

अण्ड्रियास―हमने सुना है कि तुम इस राज्य की सेवा करने का अपार अनुराग अपने अन्तःकरण में रखते हो।

फ्लोडोआर्डो―यही मेरी कामना है, यही मेरी उमंग है, परन्तु इस नियम के साथ कि यदि महाराज मुझे इस प्रतिष्ठा के योग्य समझें।

अण्ड्रियास―लोमेलाइनो तुम्हारी अत्यन्त प्रशंसा करते हैं यदि जितना उन्होंने वर्णन किया है, वह सत्य है तो तु ने अपना देश क्यों छोड़ा।

फ्लोडोआर्डो―इस कारण से कि मेरे देश का शासक अंड्रि- यास सदृश पुरुष नहीं है।

अंड्रियास―सुनते हैं कि तुमारा उद्योग उन डाकुओं के निवास स्थान के खोज लेने का है जिन्होंने वेनिस के बहु तेरे लोगों की आंखों से अश्रुप्रवाह कराया है।

फ्लोडोआर्डो―यदि महाराज मेरा विश्वास करें, तो मैं तो अपना शिर देना भी स्वीकार करता हूँ।

अंड्रियास―परदेशी से इतना होना बहुत दुर्लभ है, अच्छा हम परीक्षा करेंगे कि तुम निज कथन को कहांतक पूरा कर सकते हो।

फ्लोडोआर्डो―बस महाराज इतना बहुत है, कल्ह अथवा परसों मैं अपना प्रण पूरा करूँगा।

अंड्रियास-क्या तुम यह प्रतिज्ञा ऐसी तत्परता से करते हो भला तुम इस बात से भी अभिज्ञ हो कि इन दुष्टात्माओं को [ ६२ ]बश में करना कैसा दुस्साध्य कार्य है क्योंकि जब उनका अनु- संधान कीजिये तब तो मिलते नहीं और जहाँ उनके रहने की आशा नहीं होती वहीं उपस्थित हो जाते हैं। वेनिस में कोई कोना और ग्विर ऐसा नहीं है, जिसे हमारे गुप्तचरों ने न छान मारा हो फिर भी आज तक पुलीस को उनके निवास स्थान का ठिकाना तक न मालुम हुआ॥

फ्लोडोआर्डो―मैं यह सब जानता हूँ और इसी कारण तो मैं प्रसन्न हूँ कि इससे मुझे वेनिस के राज्यकर्त्ता पर यह सिद्ध कर देने का अवसर हस्तगत होगा कि मेरे कार्य साधारण उद्योग कर्ताओं के से नहीं हैं।

अंड्रियास―प्रथम निज प्रण पूरा करो और तब मुझे आकर जतलाओ। अभी हमें यहीं पर बातचीत समाप्त कर देनी चाहिये। कहीं ऐसा न हो कि किसी दुःखद बिचार का ध्यान बँध जाने से इस शुभ दिवस के उत्साह में बिघ्न पड़े। रोजा- विला तुम भी नृत्यकर्म में योग क्यों नहीं देतीं? कौन्ट! मैं इन्हें तुम्हारे संरक्षण में छोड़ता हूँ।

फ्लोडोआर्डो―इससे विशेष मेरे लिये कौनसी महत्व की बात हो सकती है।

जब तक यह समालाप भूमिनाथ और फ्लोडोआर्डो के बीच होता रहा रोजाविला अपने पितृव्य की कुर्सी पर हाथ रखे खड़ी थी। वह अपने जी में लोमेलाइनो के इस कहने पर विचार करती थी कि "फ्लोडोआर्डो का देखना और उसे न पसन्द करना उतना ही दुस्तर है जैसा कि स्वर्ग को देखना और उस में जाने की कामना न करना" उस युवक के स्वरूप को देखकर वह मनही मन कहती थी कि लोमेलाइनो ने यह बात किसी बनावट की रीति से नहीं कही। जब महाराज ने फ्लोडोआर्डो से कहा कि वह उसे नृत्यायतन में अपने साथ [ ६३ ]ले जाय, तो रोजाबिलाने लज्जा से आँखें नीची कर लीं और हिचकी कि फ्लोडोआर्डो के हाथ में अपना हाथ दूँ वा नहीं। सच पूछिये तो मेरी अनुमति तो यह है कि यदि ऐसे अवसर पर कोई अपर स्त्री होती तो उसे भी अपनी सुध बुध न रहती, क्योंकि फ्लोडोआर्डा ऐसा ही स्वरूपमान युवक था कि जिसके निरीक्षण से मनुष्य का मन तत्काल हाथ से जाता रहे।

निदान उसने रोजाबिला को हाथ अपने हाथ में लिया और उसे नृत्यालय में ले गया। वहाँ प्रत्येक ओर हर्ष और सुखकी सामग्री प्रस्तुत थी। बाद्यों और गायको के मृदुनादों से सम्पूर्ण आयतन गूँजरहा था, नर्तकों की पद परिचालना और उनकी ठोकरों से पृथ्वी थर्रा रही थी स्वरूपमान लोगो के सहस्रों लघु लघु समूह उडु गणा की भाँति यत्र तत्र छिटके हुए थे। जिनके परिच्छद और धृत रत्नों के प्रकाश ने निशाको दिवस बना दिया था। रोज़ाविला और फ्लोडोआर्डो उन लोगों में से होते हुये आयतन के दूसरे सिरे पर निकल गये और वहाँ एक खुली हुई खिड़की के सामने खड़े हुये। कतिपय पल पर्य्यन्त वह लोग स्तब्ध रहे। कभी वह एक दूसरे को तकते कभी नर्तकों की ओर दृष्टिपात करते और कभी मृगांक माधुर्य्य को देखते और फिर सभों को भूल कर निज बिचारों में मग्न हो जाते। निदान फ्लोडोआर्डो ने कहा "राजात्मजे! इससे बढ़ कर भी कोई अभाग्य की बात हो सकती है?" यह सुन कर रोजाबिला अकस्मात् अपने विचारों से चौंकपड़ी और बोली "ऐं अभाग्य? कैसा अभाग्य? महाशय! यहाँ कौन अभागा है?"

फ्लोडोआर्डो―"और कौन; उस व्यक्ति के अतिरिक्त जो स्वर्गीय व्यजनों को देखता हो और उनसे बञ्चित रहे, जो तृषा से कण्ठ गत प्राण हो परन्तु शीतल जल का पानपात्र जो सम्मुख [ ६४ ]भरा दिखाई देता है उसे न छू सके।"

रोजाबिला―"और क्यों महाशय! क्या आप ही वह पुरुष हैं जो स्वर्गीय पदार्थों से वंचित रखे गये हैं और क्या आप ही वह पिपासित हैं कि जिसके अभिमुख शीतल तोयपूरित पान पात्र रखा है, परन्तु छू नहीं सकते? आपका संकेत अपनी ही ओर है अथवा और किसी की ओर?"

फ्लोडोआर्डो―"आप मेरा अभिप्राय ठीक समझीं, अतएव अयि कोमलांगी रोजाबिला! तुमही बतलायो कि मैं वास्तव में अभागा हूँ वा नहीं!"

रोजाबिला―"तो वह स्वर्ग कहाँ है जिससे आप वंचित हैं।"

फ्लोडोआर्डो―"जहाँ रोजाबिला सी अलौकिक देवांगना है वही स्वर्ग है।"

यह सुन कर लज्जित हो रोजाबिलाने आँखें नीची करलीं।

फ्लोडोआर्डो ने रोजाबिला का कर पल्लव स्व करकमलों में ससम्मान लेकर पूछा "राजकन्यके आप अप्रसन्न तो नहीं हुईं? मेरी यह स्पष्ट बात आपको अरुचिकर तो नहीं हुई?

रोजाबिला―"कौन्ट फ्लोडोआर्डो आप फ्लारेंस के निवासी हैं, हमारे वेनिस नगर में इस तरह की प्रशंसाको अनुवित समझते हैं, विशेषतः मैं इसे नहीं पसंद करती, और आपकी चपल रसना से इसको नहीं सुना चाहती"

फ्लोडोआर्डो?―"जीवन की शपथ है, जैसा मेरा अनुभव था मैंने वैसाही कहा, मैंने कुछ आपकी स्तुति नहीं की।"

रोजाबिला―"अच्छा वह देखो नृपति महानुभाव मान- फ्रोन और लोमेलाइनो के साथ इस आयतन में आते हैं। वह हम लोगों को नर्तकों में खोजेंगे, आओ चलो उन लोगों में सम्मिलित हो जावें॥ [ ६५ ]फ्लोडोआर्डो उसके कथनानुसार चुपचाप साथ हो गया और नर्तकोंके समीप पहुँचकर, दोनों नृत्यमें लीन हो गये। उस समय के सौंदर्य का क्या पूछना। प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि इन्हीं दोनों पर थी और प्रत्येक दिशा से स्तुति और प्रशंसा की ध्वनि चली आती थी। परन्तु रोजाविला और फ्लोडोआडौं इसका तनिक भी ध्यान न करते थे, क्योंकि उनके जी में यदि प्रशंसा श्रवणकी कुछ भी आकांक्षा थी तो केवल एक दूसरे के मुख से।