वेनिस का बाँका/द्वाविंशति परिच्छेद

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द्वाविंशति परिच्छेद।

गत परिच्छेद के अन्त में निरूपण हो चुका है, कि फ्लोडोआर्डो के नियत किये हुये समय से पौन घण्टे से कुछ ऊपर समय हो चुका था, पाँच बजाही चाहता था, पर अब तक उसका कहीं कुछपता न था। उसके बिलम्ब करने से महाराज अत्यंत व्यतिव्यस्त थे, और वे महाशय जिन्होंने उसकी ओरसे एक सहस्र स्वर्णमुद्रायें लगायीं थीं अपनी मुद्राओं के लिये अलग अकुला रहे थे। यदि प्रसन्न थे तो परोजी और उसके सहकारी, क्योंकि वे यह समझते थे कि अब कुछ काल में सहस्त्र स्वर्ण मुद्रायें बिना परिश्रम हम लोगों को हस्त गत होंगी, और महाराज और उनके पक्षपाती मुँह की खायेंगे॥

काण्टेराइनो प्रच्छन्न रीति से लोगों को बनाता था, और कहता था, कि यदि अबिलाइनों पकड़ जाय और लोगों को इस कण्टक के निवारण हो जाने से सुख प्राप्त हो, तो सहस्त्र स्वर्णमुद्रायें क्या वस्तु हैं मैं बिंशति सहस्त्र प्रदान करने के लिये तयार हूँ॥

वे लोग इसी संकल्प विकल्प में थे कि घड़ियालीने ठनाठन पाँच का घण्टा बजाया, और प्रत्येक व्यक्ति एकाग्र मानस से उसको गिनने लगा। एक बड़े कठिन कार्य्य के पूरा करने का [ १३४ ]बीड़ा उठाने से सब लोगों को फ्लोडोआर्डो के साथ एक प्रकार की सहानुभूति हो गयी थी, अतएव घण्टों का शब्द श्रवणगत होने पर प्रत्येक के मुखड़े से चिन्ता के चिन्ह प्रगट होने लगे। सबसे अधिकतर रोजाबिला उद्विग्न थी। उसके हृदय पर घण्टे के ठनाठन शब्दने वह प्रभाव उत्पादन किया जो तीब्रबाण करता है। यदि कामिलाने उसको सँभाल न लिया होता तो वह पृथ्वी पर गिर पड़ती। यद्यपि अंड्रियास को भी फ्लोडो- आर्डो से सच्ची प्रीति थी, और इस कारण से जब उनको इस विषय का ध्यान बँधता था, कि अबिलाइनों ने कहीं उसकी उठती जवानी को धूल में न मिलाई हो तो वह मन ही मन मसोसकर रह जाते थे। परन्तु रोज़ाबिला का स्नेह प्रणय में परिणत हो चुका था अतएव प्रेम पात्र से सदैव के लिये बिच्छेद हो जाने का अनुमान, उस पर शोक समूह की बृष्टि करता था। उसने चाहा कि पितृव्य से कुछ समालाप करे, परन्तु खेद और दुःख की अधिकता से कलेजा मुँह को आता था, जिह्वा जड़ हुई जाती थी, और नेत्रों से अश्रु निर्भर समान झर रहे थे। बहुत चाहती थी कि सम्बरण करे पर यह कहाँ सम्भव था। सत्य है कि जब हृदय पर आघात होता है तो आँसू अपने आप निकलते हैं। अन्ततः विवश होकर वह एक पर्यक पर बस्त्र से मुखाच्छादन कर लेट रही। उसके लेटते ही जितने लोग शेष थे उनमें से कुछ तो कई झुण्डों में बँट कर पृथक जा बैठे और परस्पर बात चीत करने लगे, और कुछ लोग उस आयतन में अत्यन्त असंतोष के साथ टहलने लगे। इसी भाँति एक घंटा व्यतीत हो गया और फ्लोडोआर्डो न आया। अब सन्ध्याकाल सन्निकट हो गया और सूर्य्य भी डूबने लगा॥

काण्टेराइनो―'क्यों महाशय फ्लोडोनार्डो ने अविलाइनो को पांचही बजे लाकर उपस्थित करने की प्रतिज्ञा न की थी? [ १३५ ]उनकी प्रतिज्ञा से पूरा एक घण्टा अधिक बीत चुका'॥

एक कर्मचारी―'मुख्य अभिप्राय तो यही है न, कि वह अबिलाइनों को लाकर उपस्थित करें चाहे एक मास ही क्यों न बीत जाय'॥

अंड्रियास―तनिक आपलोग चुप रहिये देखिये बाहर किसी के पैर की चाप मालुम होती है।"

नृपति महाशय का कथन समाप्त भी न होने पाया था कि उस आयतन का द्वार अचाञ्चक खुल गया और फ्लोडोआर्डो खट से आयतन में प्रविष्ट हुआ, उस समय वह एक (चुगा) से आवृत था। उसके केशजाल विखरे हुये थे, और एक आपीड़वान टोपी शिर पर थी। आपीड़से पानी की बूँदें टपक रही थीं, और उसका मुख अत्यन्त उद्विग्न ज्ञात होता था। उसने एक घबड़ाहट भरी दृष्टि से अपनी चारों ओर देखा, और प्रत्येक व्यक्ति को झुक कर प्रणाम किया। उस समज्या के सब लोग क्या लघु क्या महान उसके आस पास एकत्र हो गये, प्रत्येक व्यक्ति प्रश्न करता था और उत्तर की प्रतीक्षा करके उसके आनन की ओर देखता था।

मिमो―"ऐ परमेश्वर! तू रक्षा कीजियो मुझे भय है कि ऐसा न हो।"

काण्टेरोइनों―(क्रोध का दृष्टि से देख कर) 'वस महाशय चुप रहिये भय करने का कोई कारण नहीं है॥'

फ्लोडोआर्डो―(अत्यन्त निर्भयता के साथ) महाशयो! मैं अनुमान करता हूँ कि हमारे महराज ने आप लोगों को इस निमन्त्रण के मुख्य अभिप्राय से अवश्य अभिज्ञ कर दिया होगा। सुतरां अब मैं आप लोगो का असमञ्जस निवारण करने के लिये उपस्थित हुआ हूँ पर पहले महाराज फिर एकबार मेरा समा- धान कर दें और आश्वासन कर दें कि यदि मैं अबिलाइनो को [ १३६ ]आपके सम्मुख लाकर उपस्थित कर दूँ तो रोजाबिला मेरी परिणीता होगी।"

अंड्रियास। (उसकी ओर अत्यन्त उद्विग्नता के साथ देख कर) "फ्लोडोआर्डो तुम सफल मनोरथ हुये? अबिलाइनो को तुमने धृत कर लिया?"

फ्लोडोआर्डो। "आपको इससे क्या यह कथन कीजिये कि यदि अविलाइनो को मैं लाकर आपके सम्मुख उपस्थित करूँ तो मेरा बिवाह रोजाबिला के साथ होगा अथवा नहीं।"

अंड्रियास। अच्छा तुम अबिलाइनो को जीवित अथवा मृतक मेरे सम्मुख लाओ रोजाबिला तुह्मारी है, मैं शपथ करता हूँ कि कदापि अपनी प्रतिज्ञा से न टलूँगा, और यह भी कहता हूँ कि उसको यौतुक इतना दूँगा कि तुम लोग जीवन पर्य्यन्त महाराजों के समान अपना जीवन व्यतीत करोगे।"

फ्लोडोआर्डो। क्यों महाशयो! आप लोगों ने नृपति महा- शय का शपथ श्रवण कर लिया।"

सब लोग एक साथ वोल उठे कि हम लोग तुमारे साक्षी हैं।

फ्लोडोआर्डो। (अत्यन्त धृष्टता से दो कदम आगे बढ़कर) तो श्रवण कर लीजिये अलाइनो मेरे आधीन है बरन आप के अधिकार में है।"

प्रत्येक व्यक्ति। (अकुलाकर) "वह हमारे वश में है? ऐ परमेश्वर! तू दयाकर, वह है कहाँ? अजी अबिलाइनो हमारे वश में है?"

अंड्रियास। जीवित है अथवा मृत हो गया?"

फ्लोडोआर्डो। "जी अबतक जीवित है।"

पादरी गाञ्जेगा। (अकुलाकर) "क्या अबतक जीवित है।"

फ्लोडोआर्डो। (अत्यन्त संत्कार पूर्व्वक नतस्कन्धहोकर) "हाँ महोदय! अबतक जीवित है।" [ १३७ ]रोजाबिला। (कामिला की ग्रीवासे लपटकर) प्रिये! कामिला तुमने कुछ सुना? वह दुष्टात्मा अबतक जीवित है, फ्लोडोआर्डो उसके रुधिर की बूँद भी अपनी गरदन पर नहीं ली।"

वह कर्म्मचारी जिसने शर्तलगायी थी "अजी महाशय काण्टे- राईनो मैंने आपसे एक सहस्र स्वर्ण मुद्रायें जीतीं।"

काण्टेराइनो। "हाँ महाशय! कुछ ज्ञात तो ऐसा ही होता है।"

अंड्रियास। 'बेटा तुमने वेनिस पर सदा के लिये बड़ा उपकार किया, और मैं प्रसन्न हूँ कि उस पर यह बहुत बड़ा उपकार फ्लोडोआर्डो का हुआ।"

एक कर्मचारी। मैं आपको इस उपकार के बदले में वेनिस के सेनेट की ओर से धन्यवाद प्रदान करता हूँ। अब हमलोगो को सबसे पहले यह कार्य्य करना है कि तुम्हारी इस उत्तमोत्तम सेवा का कोई उचित पुरस्कार निश्चित करें।"

फ्लोडोआर्डो। "(रोजाबिला की ओर कर द्वारा संकेत कर के) मेरा पुरस्कार वह है॥"

अंड्रियास। '(प्रसन्न होकर) 'वह अब तुम्हारी हो चुकी पर यह तो बताओ कि तुम उस दुष्टात्मा को कहाँ छोड़ आये हो? यहाँ उसको लेआओ जिसमे मैं उसको एकबार और देख लूँ। जब मुझसे समागम हुआ था तो उसने अत्यन्त अपमान पूर्वक कहा था 'नृपति महाशय मैं आप के समान हूँ इस संकीर्ण कोठरी में इस समय वेनिस के दो महद् व्यक्ति उपस्थित हैं॥" तनिक अब अवलोकन करूँ कि यह द्वितीय महद् व्यक्ति बँधा हुश्रा कैसा ज्ञात होता है॥"

दो तीन माननीय कर्मचारी। 'वह कहाँ है लाकर उपस्थित क्यों नहीं करते॥"

इस बातको सुनकर कतिपय स्त्रियाँ चिल्लाकर कहने लगीं परमेश्वर के लिये उस दुष्टात्मा को अलग ही रखो यदि वह यहाँ [ १३८ ]आया तो हमलोगों के जीवन समाप्त हो जाने की आशंका है॥"

फ्लोडोआर्डो। '(मुसकान पूर्वक जिससे प्रसन्नता के बदले में दुःख का विकाश होता था) 'ऐ माननीया कोमलांगियो तुम कदापि कुछ भी न डरो क्यों कि अविलाइनो तुम्हारी किसी प्रकार की क्षति न करेगा, परन्तु उसका यहाँ आना अवश्य है इसलिये कि (बाँके की पत्नी) के विषय में प्रगटतया प्रार्थना करे'। यह कह कर उसने रोजाबिला की और संकेत किया।

रोजाबिला―'मेरे दृढ़ और अकृत्रिम मित्र तुमने मेरी चि- न्ताको निवारण किया मैं किस मुख से तुमको धन्यवाद प्रदान करूँ। अब मैं अबिलाइनो का नाम श्रवण कर कभी न डरूँगी, और रोजाबिला को अब कोई बाँके की पत्नी' न कहेगा'।

फलीरी―'क्या इस समय अविलाइनो इस आयतन में बिद्यमान है'।

फ्लोडोआर्डो―'हाँ'

एक कर्मचारी―'तो आप क्यों उसे लाकर उपस्थित नहीं करते, क्यों हमारे असमंजस को द्विगुण त्रिगुण कर रहे हैं'॥

फ्लोडोआर्डो―'तनिक क्षमा कीजिये अब उसके आगमन का समय समीप है॥ महाराज आप बैठ जायँ और दूसरे लोग महाराज के पीछे खड़े हों। अविलाइनो आता है'।

अविलाइनो आता है' इस कहने पर वृद्ध युवक स्त्री पुरुष सब विद्युत् समान अपने स्थान से कूदकर अंड्रियास के पीछे जा खड़े हुये। उस के भय से प्रत्येक का कलेजा बल्लियों उछल रहा था, परन्तु परोजी और उसके मित्रों की दशा सबसे निकृ- ष्टतम थी। महाराज अपनी कुर्सीपर अत्यन्त सावधानता पूर्वक मौनावलम्बन किये बैठे थे। उनका मुख अवलोकन करने से यह ज्ञात होता था, कि मानो उन्हें लोगों ने उस चोर और डाकुओं के मौलिमणि के विषय में अनुशाशन देने के लिये न्याय कर्त्ता [ १३९ ]नियत किया है। कौतुक दर्शक प्रत्येक ओर कतिपय समूह में एकत्रित थे, और उनकी निस्तब्धता का वह समा था जैसा अपराधी की फाँसी की आज्ञा सुनने के समय होता है। रोजाबिला सामान्यतया कामिला के कन्धे पर हाथ रक्खे खड़ी थी। और अपने प्रेमी की वीरता देख कर जोही जी में प्रसन्न थी। परोजी और उसके साथी सबके पीछे खड़े हुये थे और किसी के मुख से श्वास पर्यंत नहीं निकलता था।

फ्लोडोआर्डो―'अच्छा ले' अब आप लोग सावधान हो जायँ क्योंकि अबिलाइनो यहाँ अब तत्काल आकर उपस्थित होगा' कोई महाशय घबरावें नहीं वह किसी की कुछ हानि न करेगा'।

यह कहकर वह उन लोगों के निकट से द्वार की ओर गया और वहाँ पहुँचकर उसने कियतकाल पर्यन्त अपना मुख अपने धृतपरिच्छद द्वारा आवृत किया। इसके उपरांत शिर उठाकर अविलाइनो का नाम लेकर पुकारा उस समय वहाँ जितने लोग विद्यमान थे अबिलाइनो का नाम श्रवण कर थर्रा उठे और उनके शरीर में कम्प का संचार हो गया। रोजाबिला भी भयग्रस्त होकर अपने प्रेमी की ओर कम्पितगात से कतिपय पदक्रम आगे बढ़ी। उसकी यह दशा कुछ अपने संरक्षण के विचार से न थी, बरन वह फ्लोडोआर्डो की जीवन रक्षा के लिये अकुलाई हुई थी। अबिलाइना के न आने पर फ्लोडोआर्डो ने दूसरी वार क्रोधपूरित बाणी से फिर पुकारा और अपना (चुगा) और अपनी टोपी फेंक कर और द्वार कपाट खोलकर बाहर जाने ही को था, कि रोजाबिला चिल्लो कर उसकी ओर दौड़ी किन्तु फ्लोडोआर्डो अन्तर्हित हो गया और उसके स्थान पर अबिलाइनो भोंड़ी और महाभयावनी आकृति से 'हा हा' करता हुआ दृष्टिगोचर हुआ।