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वेनिस का बाँका/विंशति परिच्छेद

विकिस्रोत से
वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १२० से – १२७ तक

 

विंशति परिच्छेद।

गत परिच्छेद में, फ्लोडोआर्डो और नृपतिवर्य्य अंड्रियास का भाषण और उसका अन्तिम विवरण वर्णन किया गया, अब कुछ परोजी और उसके सहकारियोंका समाचार श्रवण करना चाहिये। ज्यों ही परोजी को फ्लोडोआर्डो के आगमन की बात ज्ञात हुई, उसने तत्काल अपने सुहृदां पर जो नियमानुसार पादरी गाञ्जेगा के आगार में एकत्रित थे उसके प्रत्यागमन का भेद प्रगट किया।

परोजी। "अहा! हा! हा!! मित्रवरो! आज तो पौ बारह है, चैन ही चैन दीखता है, मंगल ही मंगल है, भाई परमेश्वर की शपथ मैं तो वस्त्रों में फूला नहीं समाता। अपने भाग्य के बल बल जाइये, अहा! हमलोग भी कैसे सद्भाग्य हैं, पक्का समाचार मिला है कि आज फ्लोडोआर्डो यात्रा करके वापस पाया, अबिलाइनो को उसके पीछे लगाया ही गया है, बस समझ जाइये"।

गाञ्जेगा―"यह तो सब ठीक है, पर फ्लोडोआर्डो बड़ा ही चालाक है, एक ही काइयाँ है, मेरी राय तो यों है कि यदि वह हम लोगों का सहकारी हो जाता तो उत्तम था क्योंकि उस पर शस्त्र प्रहार सफल होना तनिक दुस्तर व्यापार है"।

फ़लीरी―'जहाँ तक मुझे ज्ञात है, मैं कह सकता हूँ कि रोजाबिला का मन मिलिन्द भी उसके स्नेह-जल जात- कोष में बद्ध है।

परोजी―'अजी महाशय! कहाँ आपका ध्यान है, आगामी दिवस पर्यंत धैर्य्य धरिये फिर चाहे वह शैतान की मातृस्व- सापर क्यों न मोहित हो, इस बीच में अविलाइनो उसका कार्य समाप्त कर चुकेगा'।

कान्टेराइनो―'भाई मुझे तो आश्चर्य इस बात का है कि यद्यपि मैंने फ्लारेन्स में पूर्ण अनुसन्धान किया, पर कुछ न ज्ञात हुआ कि यह फ्लोडोआर्डो कौन है, किसका आत्मज है, कहाँ रहता है। मेरे पास पत्र आये हैं, उनसे केवल इतना ज्ञात हुआ है कि किसी समय वहाँ एक वंश इस नाम का था, परन्तु बहुत दिवसों से उसका चिह्न पर्यन्त मिट गया यदि अब उसके कुछ लोग शेष भी रह गये हैं, तो वे प्रच्छन्न रहते हैं'।

गान्ज़ेगा―'अच्छा यह तो बताओ कि नृपति महाशय के यहाँ तुम सभों का निमन्त्रण है'।

कान्टेराइनो―'सबका'।

गाञ्ज़ेगा। 'यह बहुत अच्छा हुआ' ज्ञात होता है कि जब से महाराज के तीनों सहकारी बिनष्ट हुए हैं, मेरे कथन का उनके हृदय पर उत्तम प्रभाव हुआ है, और क्यों भाई संध्या समय नृत्य भी होगा! महाराज के परिचारक ने ऐसा ही तो कहा था?'

फलीरी। 'हाँ कहा तो था'।

मिमो। परमेश्वर करे कि इस निमन्त्रण की ओट में कोई मूढ़ रहस्य न हो, कहीं महाराज को हम लोगों के गुप्त कर्मो का भेद न ज्ञात हो गया हो, ऐ परमेश्वर तू दया कर, इस विषय के ध्यान से भी मेरा हृदय पानी हुआ जाता है।

गान्ज़ेगा। क्या व्यर्थ बकते हो भला हमारी अभि- सन्धि उन्हें क्यों कर ज्ञात हो गयी, यह बात सर्वथा अस- म्भव है।'

मिमो। 'असम्भव! वाह असम्भव की एक ही कही, अजी तनिक यह तो सोचो कि जब वेनिस के सम्पूर्ण चोर, ग्रन्थितक्षक, उपद्रवी और डाकू तुम्हारे सहकारी हैं तो क्या आश्चर्य्य है कि महाराज को भी इसका कुछ समाचार ज्ञात हो गया हो। भला जो भेद शतशः मनुष्यों को ज्ञात हो वह ऐसे चतुर और व्युत्पन्नव्यक्ति से कब छिपा रह सकता है।"

काण्टेराइनो―बस तुम निरे कादर ही हो, यह नहीं समझते कि जिसके शिर पर सींग होती है वह चाहे सारे संसार को दिखाई दे पर स्वयं उसे दिखलाई नहीं देती। परन्तु हाँ इस बातको मैं भी स्वीकार करता हूँ, कि अब बिलम्ब करना उचित नहीं तत्काल इस कार्य को कर ही डालना युक्ति संगत है।

फलीरी―मित्र यह तुम सत्य कहते हो अब सम्पूर्ण सामान एकत्रित है, जितना शीघ्र प्रहार किया जाय उतना ही उत्तम है'।

परोजी―'इसके अतिरिक्त एक कारण यह भी है कि इस समय प्रजा, "जो अंड्रियास से अप्रसन्न है और हमारी पृष्ट पोषक है, बहुत प्रसन्न होगी, यदि आज ही यह कार्य प्रारम्भ हो जाय। यदि इसमें और विलम्ब हुआ तो उनका प्रज्वलित क्रोध शान्त हो जायगा, और फिर वह लोग हमारे गँव के न रहैंगे'।

काण्टेराइनो―'तो फिर इस बात की तत्काल मीमांसा हो जानी चाहिये। मेरे परामर्शानुसार कल्ह का दिवस अतीवोत्तम है, महाराज को तो मेरे भरोसे छोड़िये। उनके ठिकाने लगाने की मैं प्रतिक्षा करता हूँ फिर चाहे और जो कुछ हो, परन्तु इसका दो ही परिणाम होगा, अर्थात् या तो हम लोग सम्पूर्ण प्रबन्ध को उलट पलट कर अपनी आपदा और क्लेश से स्वातन्त्र्य लाभ करेंगे, या आपही इस असार सन्ताप स्वरूप संसार से सीधे परलोक की यात्रा करेंगे।'

परोजी―मेरी यह अनुमति है कि हमलोग निमन्त्रण में निरस्त्र होकर कभी न जाँय।

गाञ्जेगा―'हाँ भाई इस समय अच्छा विषय स्मरण कराया, सुना है कि पुलीस के सकल उच्च कर्मचारी भी सतर्कता पूर्वक निमंत्रित किये गये हैं। फलीरी―परमेश्वर की शपथ है कि मैं एक एक को चुन कर मारूँगा।'

मिमो―'जी हाँ इस में क्या सन्देह है आप ऐसे ही तो अपने समय के भीम हैं। मैं कहता हूँ कहीं उलटे लेने के देने न पड़े।'

फलीरी―भाई यह बड़ा ही भीरु व्यक्ति है, जब पहले ही से आपके औसान नष्ट हुए जाते हें, तो संग्राम समय आप कब दृढ़ पदारोपण कर सकेंगे। बस ज्ञात हुआ कि ये निरे डेंगिये ही हैं, बातें अलबत्ता बढ़ बढ़ कर बनाना जानते हैं, पर अवसर पड़े लांगूल लपेट कर निकल भागने वाले ही जान पड़ते हैं। ऐसा ही प्राण का भय है तो चूड़ियाँ पहन कर घर में बैठो, हमलोग अपनी सी भुगत लेंगे, पर स्मरण किये रहो कि यदि हमारा प्रयत्न सफल हुआ, और उस समय तुम अपनी मुद्राओं को जो इस समय पर्य्यन्त दे चुके हो, माँगोगे, तो फूटी कौड़ी भी न देंगे।'

मिमो―'तुम व्यर्थ मुझको परुष और मर्म भेदी बातें सुनाते हो, मैं किसी दशा में बीरता अथवा पराक्रम में तुम से घट कर नहीं हूँ जी चाहे परीक्षा कर लो, आओ दो एक हाथ करबाल के चल जाँय, तुमने मुझे समझा क्या है, पर परमे- श्वर का धन्यवाद है कि मैं तुमारे समान उतावली करने वाला नहीं हूँ।

गाञ्जेगा―'अच्छा माना कि हमारी कामना जैसी चाहिये वैसी पूरी न हुई, तो इससे क्या जहाँ अंड्रियास मरे, फिर चाहे प्रजा जितना कोलाहल मचाये, हमलोगों का बाल बाँका न होगो क्यों कि पोप * हमारी सहायता पर हैं,।


  • रोमन केथोलिक पथके ईसाइयों में पोपकी बड़ी पदवी है, उसे

सब लोग मानते हैं। पोप से अधिक कोई धार्मिक पद नहीं होता, ये लोग मिमो―'ऐं पोप? हमलोगों की सहायता करने के लिये दत्तचित्त हैं?।'

गाञ्जेगा―(उसके सामने पोप का पत्र फेंक कर) लो पढ़ो तुमको तो किसी के कथन का विश्वास ही नहीं आता। कहता हूँ न कि पोप ने हम लोगों की सहायता करने की प्रतिज्ञा की है, क्योंकि उन से यह बात कही गई है कि जब वेनिस का प्रबन्ध प्रथमतः फिर से संगठित होगा, तो यहाँ की धर्म्म संबंधी बातों में उनको पूरा अधिकार दिया जायगा। बस परमेश्वर के लिये मिमो अब हम लोगों को व्यर्थ क्लेशित मत करो, बरन काण्टेराइनों के विचार को तत्काल कार्य में परिणत करो। अब उचित है कि सर्वजन जो हमारे सहकारी हैं आज ही परोजी के गृह पर बुलवाये जायँ, और वहाँ उनको आवश्यकतानुसार अस्त्र शस्त्रा दे दे दिये जाँय। बिप्लव करने का संकेत यही नियत रक्खो, कि ज्यों ही निशीथ काल हो काण्टेराइनो नृत्यायतन से तत्काल शस्त्रालय की ओर दौड़ जाँय, सालवाइटी जो वहाँ का निरीक्षक और रक्षक है, हमलोगों का पृष्टपोषक है वह इनके पहुँचते ही द्वार कपाट खोल देगा।'

काण्टेराइनो―सामुद्रिक अधिकारी (अमीरुलबहर) इडार्नो को भी ज्यों ही यह समाचार ज्ञात होगा, अपने चरों और धावकों को लेकर हमारी सहायता के लिये तत्काल पहुँच जायगा।'

परोजी―'भाई अब तो हमारे कार्य्य के पूर्ण होने में रञ्चक मात्र संशय नहीं।'

काण्टेराइनो―केवल इतना स्मरण रखना चाहिये कि


सदा से रूम में रहते हैं जो पहले इटली की वरन अखिल संसार की राजधानी था॥ प्रथम तो जहाँ तक कोलाहल और तुमुल शब्द हो सके हम लोग करें, इसलिये कि उपस्थितजन व्यतिव्यस्त हो जायँ, दूसरे हमारे शत्रु कानोंकान अभिज्ञ न होने पावें, कि कौन उनका मित्र है और कौन उनका शत्रु तीसरे अपने दल के अतिरिक्त और किसी को न ज्ञात हो कि इस कोलाहल और तुमुल शब्द का मूल प्रयोजन क्या है? और कौन लोग इसके प्रवर्तक और संयोजक हैं।

परोजी―'परमेश्वर की शपथ मैं तो अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि वह समय समीप है जब कि हम लोग अपने मनोरथ के प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करेंगे।'

फलीरी―'क्यों परोजी तुमने स्वेतसूत्र (फीते) जिन से हमलोग अपने सहायकों को पहचान सकेंगे सम्पूर्ण जनों को बाँट दिये।'

परोजी―'धन्य। कतिपय दिवस हुये, तुम्हें ज्ञात ही नहीं।'

कांटेरोइनो―'अच्छा तो अब अधिक बिवाद करने की आवश्यकता नहीं। बिषय उपस्थित है, केवल कार्य प्रारम्भ करने का बिलम्ब है, अब अपना अपना पानपात्र भरते जावो, मदपान प्रारंभ हो, क्योंकि फिर जब तक कि सम्पूर्ण कार्य न हो जावेगा काहेको समागम हो सकेगा।'

मिमो―'परन्तु मैं समझता हूँ कि इस विषय की पुनरपि पूर्ण बिबेचना और आलोचना कर लेनी चाहिये॥

काण्टेराइनो―'अजी रहने भी दो बिबेचना करलेनी चाहिये नहीं एक वह कर लेनी चाहिये, ऐसी बातों में विवेचना नहीं करते यह तो तात्कालिक कार्य है, इसे सोचने और बिचा- रने से क्या प्रयोजन। पहले तत्पर होकर एक बार बेनिस का प्रबंध उलट देना चाहिये, जिसमें कोई पहचान न सके कि स्वामी कौन है, और सेवक कौन है, फिर उस समय निस्सन्देह बिचार कार्य में परिणत होगा। लो भाई बैठे क्या करते हो पानपात्र पूरित कर पान करना प्रारंभ करो। परमेश्वर की शपथ है कि मुझे तो हँसी आती है, कि महाराज ने आमंत्रण करके आप ही हम लोगों को अपनी अभिसन्धि पूर्ण करने का अवसर प्रदान किया है॥"

परोजी―'शेष रहा फ्लोडोआर्डो, उसको तो मैं इसी समय मरा अनुमान करता हूँ तथापि नृपति महाशय के गृहगमन के प्रथम अविलाइनो से मिल लेना उत्तम होगा॥'

काण्टेराइनो―'यह कार्य हमलोग तुम्हारे ऊपर छोड़ते हैं। अब मैं अबिलाइनो के स्मरण में यह मदपूरित प्याला पीता हूँ॥

इस पर सबने एक एक पानपात्र अबिलाइनो के स्मरण में पान किया। फिर पादरी गानज़ेगाने द्वितीय पानपात्र कार्य्य सिद्धि की कामना करके विष मार कर पिया और सभोंने उसका साथ दिया।

परोजी―'भाई मदिरा है तो स्वादिष्ट और प्रत्येक व्यक्ति के मुखड़े पर इस समय उत्साह भी झलक रहा है, परन्तु देखिये अड़तालिस घण्टे के उपरान्त भी ऐसा आनन्द प्राप्त होता है अथवा नहीं, अभी तो हमलोग हँसी और प्रसन्नता के साथ अलग होते हैं, अब परमेश्वर जाने कि दो दिन के बाद जब फिर एकत्र होंगे उस समय भी यही उत्साह बना रहता है या नहीं। अच्छा जो हो सो हो अब तो हमने इस भयँकर दरिया में निज नौका को डाल दिया पार लगाने वाला परमेश्वर है।