वेनिस का बाँका/सप्तम परिच्छेद

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सप्तम परिच्छेद।

अविलाइनो ने बड़ी बुद्धिमानी की कि वहाँ से तत्काल भाग खड़ा हुआ, क्योंकि उसके चले जाने के कुछ देर बाद बहुत से लोग दैवात् टहलते हुए उधर आये, और माटियो का शव और रोज़ा- विला को भय से त्रस्त, पीतवर्ण, काँपती, देखकर आश्चर्य्य करने लगे। बात की बात में वहाँ एक भीड़ एकत्रित हो गई और प्रतिक्षण अधिक होने लगी। जो मनुष्य आता वह उस वृत्तान्त को श्रवण करना चाहता, और रोज़ाविला को भी प्रत्येक पुरुष के समादर के लिये सम्पूर्ण समाचार बार २ दुहराना पड़ता। कुछ लोग वहाँ महाराज के पार्श्ववर्तियों में से भी उपस्थित थे, जो लपककर उसके सहचरों को बुला लाये। रोज़ाबिला के चढ़ने की नौका तो प्रस्तुत थी ही, वह तत्काल उसपर चढ़कर अपने पितृव्य के प्रासाद में प्रविष्ट हुई।

अधिकारियों ने आज्ञा दी कि प्रत्येक नौका जहाँ की तहाँ रहे और जब तक उसका निरीक्षण न हो ले वहाँ से न हटने पाये। इसके अतिरिक्त ज्यों ही पहले पहल माटियो का शव [ ३३ ] वहां पाया गया, उपबन का द्वार बन्द करा दिया गया, और जितने लोग उसमें उपस्थित थे वह पहचान पहचान कर जाने पाये, परन्तु अविलाइनो का चिन्ह तक हस्त- गत न हुआ।

इस अद्भुत घटना का समाचार वेनिस भर में अति शीघ्र फैलगया और अविलाइनो के विषय में-जिसका नाम रोजा- विलाने भली भांति अपने हृदय पत्र पर लिख लिया था और सम्पूर्ण वृत्तान्त वर्णन करके जिसके नाम को प्रख्याति प्रदान की थी-प्रत्येक पुरुष को आश्चर्य था और सब को उसके देखने का अनुराग हो गया था। जिसे देखिये वह रोजाविला की दशा पर दुःख प्रकाश करता और कहता कि उस बेचारी के हृदय पर उस समय क्या बीता होगा, और उस आततायी पर धिक्कार शब्द का प्रयोग करता, जिसने उस को मार डालने के लिये माटियो को सन्नद्ध किया था। प्रत्येक व्यक्ति उन समस्त क्रमरहित बातों का क्रम मिलाने के लिये एक न एक कल्पित कारण सोच लेता, चाहे वह कैसा ही अमूलक क्यों न हो। जिस पुरुषने इस समाचार को सुना, अपने अन्तरङ्गों को कह सुनाया और जिसने कहा उसने अपनी ओर से दो एक बातें और जोड़ कर मिला दीं, यहाँ तक कि बढ़ते बढ़ते वह एक पूरा उपाख्यान हो गया, जिसका नाम सुन्दरता का प्रभाव निर्विवाद रख सकते हैं क्योंकि स्त्रियों और पुरुषों ने यह बात परस्पर निश्चित कर ली थी कि अविलाइनो ने रोजाविलाको अवश्य मारडाला होता पर उसकी अलौकिक सुन्दरता के कारण उसका हाथ न उठ सका। उसने रोजाविला के जीवन की यद्यपि रक्षा की थी तथापि लोगों को भय था कि मुनाल- डश्चीका राजकुमार जिसके साथ रोजाविलाका विवाह निर्धा रित हुआ था, और जो नेपलूसका एक बड़ा धनवान और [ ३४ ]विख्यात मान्य व्यक्ति था इस बात को सुनकर प्रसन्न न होगा। महाराज कुछ समय से अपनी भ्रातृजा के पाणिपीड़न की वार्ता गुप्त रीति से इस राजकुमार के साथ कर रहे थे और अब वह बहुत शीघ्र वेनिस में आने वाला था। उसके आने का कारण नृपति के इतना छिपाने पर भी सब लोगों को विदित हो गया था। केवल एक रोजाविला जिसने उस राजकुमार का पहले कभी स्वरूप भी न देखा था इस बात से अनभिज्ञ थी, वह यह भी नहीं समझ सकती थी कि उसके आने का समा- चार श्रवण कर प्रत्येक पुरुष को इतनी उत्सुकता क्यों हो गई है॥

अब तक तो लोग रोजा विलाके विरुद्ध कोई बात न कहते थे परन्तु अन्ततः युवतियों के अन्तःकरण में ईर्षा का प्रादुर्भाव हुआ कि वह अपनी सुन्दरता के कारण अविलाइनो के कौशल से क्यों निर्विघ्न निकल आई। अविलाइनो ने रोजाबिला का जो एक बार चुम्बन कर लिया था, उससे उनको अपने आन्त- रिक विकारके निकालने का पूर्ण अवसर हस्त गत हुआ। दो तीन स्त्रियाँ एक ठौर एकत्रित होतीं, तो परस्पर यही चर्चा करतीं, एक कहती "क्यों बहन! अबिलाइनो ने रोजाविला के साथ उपकार तो बड़ा किया, न जाने उसने भी उसके प्रतिकार में उसका सम्मान कहाँ तक किया होगा"। दूसरी बोलती "सच कहती हो बहन, मैं भी अनुमान करती हूँ कि वह पुरुष कुछ मुर्ख न था कि ऐसी दशा में जब कि एक किशोरवयस्का सुन्दर स्त्री जिसके जीवन की उसने रक्षा की, एकाकी समीप विद्यमान हो और वह एकवार चुम्बन करके चला जाय"। तीसरी अपना महत्व दिखलाने के लिये बोलती "अच्छा जी हम को यह उचित नहीं कि किसीके विषय में कुत्सित बातें मुख से बाहर निकालें, परन्तु मैं इतना अवश्य कहूँगी कि [ ३५ ]अविलाइनो जैसे लोग ऐसे सद्व्यक्ति नहीं होते, और यह पहले ही बार है कि मैंने एक बांके छैले को सभ्य सुना।" संक्षिप्त यह कि वेनिस के निठल्ले लोगों, झूठी और निर्मूल बातों के वक्ताओं ने, रोजाविला और अविलाइनो का यहाँ तक चबाव किया कि महाराज की भ्रातृजा संसार भर में "बाँके की पत्नी के निकृष्ट नाम से प्रख्यात हो गई"।

परन्तु किसी मनुष्य को इस बात की इतनी चिन्ता न थी जितनी कि नरपति अण्ड्रियास को, वे यद्यपि भले थे, पर ऐसे अयोग्य लांछन को कब स्वीकार कर सकते थे। उन्हों ने तत्काल आज्ञा दे दी कि जिस मनुष्य के स्वरूप से बद चलनी अथवा दुराचरण की आशंका पाई जाय उसका निरी- क्षण पूर्णतया हो। इसके अतिरिक्त उन्होने रात्रि के भ्रमण करने वालों की संख्या बढ़ा दी और चारो ओर गुप्तचरों और गूढ़ पुरुषों को नियत किये कि वह जैसे हो सके अबिलाइनो का पता लगायें। परन्तु यह सम्पूर्ण युक्तियाँ निष्फल थीं क्योंकि जिस स्थान पर अविलाइनो रहता था वहां वायु का संचार भी कठिनता से होता था और पक्षी पर्य्यन्त का प्रवेश भी एक प्रकार से असंभव था।