सत्य के प्रयोग/ पंजाबमें

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ ४९६ ]अध्याय ३५: पंजाब ४७६ यह कत्ल न हुआ होता और न फौजी कानून ही जारी हो पाता। कुछ लोगोंने तो धमकियां भी दीं कि यदि अब अपने पंजाबमें पैर रक्खा तो आपका खून कर डाला जायगा । पर मैं तो मान रहा था कि मैंने जो-कुछ किया है वह इतना उचित और टीक था कि उसमें समझदार आदमियोंको गलतफहमी होनेकी संभावना ही न थी। मैं पंजाब जानेके लिए अधीर हो रहा था। इससे पहले मैंने पंजाब देखा नहीं था; पर अपनी आंखों जो-कुछ देख सकें, देखनेकी तीव्र इच्छा थी। और मुझे बुलानेवाले डा० सत्यपाल, किचलू, रामभजदत्त चौधरी आदिसे मिलनेकी अभिलाषा भी हो रही थी। वे थे तो जेलमें, पर मुझे पूरा विश्वास था कि उन्हें सरकार अधिक दिनों तक जेल में नहीं रख सकेगी। जब-जब मैं बंबई जात, तब-तब कितने ही पंजाबी भाई मिलने आ जाते थे। उन्हें मैं प्रोत्साहन देता और वे प्रसन्न होकर उसे ले जाते । उस समय मेरा अात्म-विश्वास बहुत था । पर मेरे पंजाब जानेका दिन दूर-ही-दूर होता जाता था । वाइसराय, भी यह कहकर उसे दूर ढकेलते जाते थे कि अभी समय नहीं है । . . . इसी बीच हंटर-कमिटी आई । वह फौजी कानूनके दौरेमें पंजाबके अधिकारियों द्वारा किये कृत्योंकी जांच करनेके लिए नियुक्त हुई थी। दीनबंधु एंड्रूज वहां पहुंच गये थे। उनकी चिट्ठियोंमें वहांका हृदयद्रावक वर्णन होता था। उनके पत्रोंसे यह ध्वनि निकलती थी कि अखबारोमें जो कुछ बातें प्रकाशित हो चुकी हैं उनसे भी अधिक जुल्म फौजी कानूनका था। वह भ पंजाब आनेका आग्रह कर रहे थे। दूसरी ओर मालवीयजीके भी तार आ रहे थे कि आपको पंजाब अवश्य पहुंच जाना चाहिए। तब मैंने फिर वाइसरायको तार दिया । उनका जवाव आया कि फलां तारीखको आप जा सकते हैं। अब तारीख ठीक-ठीक याद नहीं पड़ती, पर बहुत करके वह १७ अक्तूबर थी । लाहौर पहुंचने पर मैंने जो दृश्य देखा वह कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्टेशनपर मुझे लिवानेके लिए ऐसी भीड़ इकट्ठी हुई थी, मानो किसी- बहुत दिनके बिछड़े प्रिय-जनसे मिलनेके लिए उसके सगे-संबंधी आये हों। लोग हर्षसे पागल हो रहे थे। पंडित रामभजदत्त चौधरीके यहां मैं ठहराया गया था। श्रीमती सरलादेवी चौधरानी से मेरा पहलेका परिचय था । मेरे अतिथ्यका भार उनपर [ ४९७ ]४६० आत्म-कथा : भाग ५ आ पड़ा था। आतिथ्यका 'भार' शब्दको प्रयोग मैं जान-बूझ कर कर रहा हैं; क्योंकि आजकी तरह तब भी मैं जहां ठहरता, वह घर एक धर्मशाला ही हो जाता था ।। | पंजाबमें मैंने देखा कि वहांके पंजाबी नेताओंके जेल में होनेके कारण पंडित मालवीयजी, पंडित मोतीलालजी और स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानंदजीने मुख्य नेताअोंका स्थान ग्रहण कर लिया था। मालवीयजी और श्रद्धानंदजीके संपर्क में तो में अच्छी तरह आ चुका था; पर पंडित मोतीलालजीके निकट संपर्कमें तो में लाहौरमें ही आया । इन तथा दुसरे स्थानिक नेताअोंने, जिन्हें जेल जानेका गौरव प्राप्त नहीं हुआ था, तुरंत मुझे अपना बना लिया। कहीं मुझे यह ने मालूम हुआ कि मैं कोई अजनबी हूँ ।। | हम सब लोगोंने एकमत होकर हंटर-कमिटी के सामने गवाही न देनेका निश्चय किया। इसके कारण उसी समय प्रकट कर दिये थे । अतएव यहां इनका उल्लेख छोड़ देता हूं। वे कारण सीधे थे और आज भी मेरा यही मत है। कि कमिटीका, हमने जो बहिष्कार किया वह उचित ही था । पर यदि हंटर-कमिटीका बहिष्कार किया जाय तो फिर लोगोंकी तरफसे अर्थात् कांग्रेसकी अोरसे कोई जांच-कमिटी नियुक्त होनी चाहिए, इस निश्चयपर हम लोग पहुंचे। पंडित मोतीलाल नेहरू, स्व० चित्तरंजन दास, श्री अब्बास तैयबजी, श्री जयकर और मैं इतनोंको पंडित मालवीयजीने उसका सदस्य बनाया। हम जांचके लिए अलग-अलग स्थानमें बंट गये । इस कमिटीकी व्यवस्थाका बोझ सहज ही मुझपर अा पड़ा था और मेरे हिस्सेमें अधिक-से-अधिक गांवोंकी जांचका काम आजानेके कारण मुझे पंजावको और पंजाबके देहातको देखने का अलभ्य लाभ मिला ।। | इस जांचके दिनोंमें पंजाबकी स्त्रियां तो मुझे ऐसी मालूम हुई, मानो मैं उन्हें युगोंसे पहचानता होऊ । मैं जहां जाता वहां झुंड-की-झुंड स्त्रियां आ जातीं और अपने कते सूतका ढेर मेरे सामने कर देतीं । इस जांचके साथ ही मैं अना- यास इस बातको भी देख सका कि पंजाब खादीका एक महान् क्षेत्र हो सकता है । ". ज्यों-ज्यों में लोगोंपर हुए जुल्मोंकी जांच अधिकाधिक गहराईसे करने । लगा त्यों-त्यों मेरे अनुमानसे परे सरकारी अराजकता, हाकिमोंकी नादिरशाही [ ४९८ ]अध्याय ३६ : खिलाफतके बदले में भोरक्षा ? ४८१ और उनकी मनमानी अंधाधुंधी की बातें सुन-सुनकर आश्चर्य और दुःख हुआ करता । बह पंजाब कि जहांसे सरकारको ज्यादा-से-ज्यादा सैनिक मिलते हैं, वहां लोग क्यों इतना बड़ा जुल्म सहन कर सके। इस बातसे मुझे बड़ा विस्मय हुआ और आज भी होता है ।। | इस कमिटीकी रिपोर्ट तैयार करने का काम मेरे सुपुर्द किया गया था । जो यह जानना चाहते हैं कि पंजाबमें कैसे-कैसे अत्याचार हुए, उन्हें यह रिपोर्ट अवश्य पढ़नी चाहिए । इस रिपोर्ट के बारे में मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि इसमें जान-बूझकर कहीं भी अत्युक्तिसे काम नहीं लिया गया है। जितनी बाते लिखी गई है, सबके लिए रिपोर्टमें प्रमाण मौजूद है। रिपोर्ट में जो प्रमाण पेश किये गये हैं उनसे बहुत अधिक प्रमाण कमिटी के पास थे । ऐसी एक भी बात रिपोर्ट में दर्ज नहीं की है, जिसके बारेमें थोड़ा भी शक था। इस प्रकार बिलकुल सत्यको ही सामने रखकर लिखी गई रिपोर्ट में पाठक देख सकेंगे कि ब्रिटिश राज्य अपनी सत्ता कायम रखनेके लिए किस हदतक जा सकता है और कैसे अमानुषिक कार्य कर सकता है। जहांतक मुझे पता है इस रिपोर्ट की एक भी बात आजतक असत्य नहीं साबित हुई है । खिलाफतके बदले में गोरक्षा ? पंजाबके हत्याकांडको फिलहाल हम यहीं छोड़ दें। कांग्रेसकी ओरसे पंजाबकी डायरशाहीकी जांच हो रही थी कि इतने में ही एक सार्वजनिक निमंत्रण मेरे हाथ में आ पहुंचा। उसमें स्वर्गीय हकीम साहब और भाई सफअलीके नाम थे। यह भी लिखा था कि श्रद्धानंदजी भी सभामझानेवाले हैं। मुझे तो खयाल पड़ता है कि वह उपसभापति थे । देहली में खिलाफतके तथा संधि-उत्सवमें भाग लेने न लेने के संबंधमें विचार करने के लिए हिंदू-मुसलमानोंकी संयुक्तसभा होनेवाली थी और उसमें आने के लिए यह निमंत्रण मिला था। मुझे याद आता है। कि यह सभा नवंबरमें हुई थी ।

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