स्वदेश/परिशिष्ट

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हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर-सीरीजके ग्रन्थोंकी

समालोचनाओंका सार।

स्वाधीनता।

'लिबर्टी' का अनुवाद और जॉन स्टुअर्ट मिलका जीवनचरित। अनुवादक, पं॰ महावीर प्रसादजी द्विवेदी। मू॰ २)

––स्वाधीनता पर मिलका यह निबन्ध जगत् में प्रसिद्ध हुआ है। इस में विचार-स्वातंत्र्यको यौक्तिकता व आवश्यकता अखण्डनीय प्रमाणोंसे सिद्ध की है।...यह अनुवाद बहुत ही अच्छा हुआ है।

भारतमित्र।

––इस पुस्तकके पढ़नेसे लोगोंकी आँखें खुलेंगी और वे समझेंगे कि सब प्रकारकी स्वाधीनता कैसी होती है।

––श्रीव्येंकटेश्वर समाचार।

––आर्य भाषाके प्रत्येक प्रेमीको इस पुस्तकका संग्रह करना चाहिए प्रचा॰

––हमें यह आशा नहीं है कि हिन्दीमें ऐसी पुस्तक छपेगी जो इसकी समता कर सके।

––शिक्षा।

––यह ग्रन्थ मनन करने योग्य है और इसके प्रकाशित होनेसे नागरीसाहित्यके भण्डारमें एक अमूल्य रत्नका संचय हुआ है

––नागरीप्रचारक।

––दास्यपंकमें लोटते हुए भारतवासियोंके लिए स्वाधीनताके समान ग्रंन्यके परिशीलनकी बड़ी आवश्यकता है।

––चित्रमय जगत्।


प्रतिभा।

अनुवादक, श्रीयुत नाथूराम प्रेमी। मू॰ १)

––यह मनुष्यके चरित्रको उदार उन्नत और कार्यक्षम बनानेवाला सचा उपदेशक है। लेखकने चरित्रचित्रणके साथ साथ इसमें भारतकी वर्तमान अवस्थाका और उसकी वर्तमान आवश्यकताओंका बहुत ही मार्मिक पद्धतिसे विवेचन किया है। इसकी भाषा भी मनोहारिणी है।

––सरस्वती।

––उपन्यास अच्छा और शिक्षाप्रद है।

––भारतमित्र।

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––प्रतिभा सचमुच यथा नाम तथा गुणवाली है। मैंने इतनी मधुर और चित्ताकर्षक भाषा इसके पहले किसी पुस्तकमें नहीं पढ़ी।

––सय्यद अमीर अली (मीर)।

––भारतमें जो नया भाव, नयी ज्योति और नई आकांक्षाका आविर्भाव हुआ है, उसकी लहर, उसके प्रकाश और उसके साधनसे यह उपन्यास शराबोर है। अच्छे अच्छे और समयानुकूल विचार इसमें भरे पड़े हैं।

––श्रीव्येंकटेश्वर समाचार।

––ऐसा भावपूर्ण और शिक्षाप्रद उपन्यास शायद ही कभी पहले हमारे सन्मुख आया हो। प्रतिभाका चरित्र भारतीय रमणियोंके लिए आदर्शस्वरूप है। लेखकने मनुष्यके मनोभावोंको पहचाननेमें प्रशंसनीय कौशल दिखलाया है। भाषा इसकी बहुत ललित है।

––अभ्युदय।

––यह ग्रन्थ उपन्यास नहीं है, नीतिका उत्तम ग्रन्थ है, समाजका प्रस्फुटित चित्र है, और उपदेशोंका उत्तम संग्रह है। इस ग्रन्थ से नागरी साहित्यका बड़ा उपकार हुआ है।

––नागरीप्रचारक।

 

फूलोंका गुच्छा।

सुन्दर सुन्दर ११ गल्पोका संग्रह। मू॰॥//)

––इसकी कहानियों मनोरंजक, रोचक, चित्ताकर्षक और शिक्षाप्रद हैं। कई कहानियों में ऐसी मर्मभेदी बातें हैं कि जिन्हें पढ़नेसे मनुष्यको अपना हृदय टटोलने की आकांक्षा उत्पन्न होती है। कहीं कहीं इस गुच्छेमें निर्मल निर्दोष आनन्दकी बड़ी मजेदार खुशबू है।

––श्रीव्येंकटेश्वर समाचार।

––गुच्छेकी कोई कोई गल्प तो बहुत ही चित्ताकर्षक है। और पुष्पगुच्छ तो मुरझा जाते हैं पर इसके मुरझानेका डर नहीं।

––कविधर मैथिलीशरण।

––इस गुच्छको पढ़कर पाठकोंका चित्त प्रसन्न होगा और इसके नैतिक उपदेशोंसे वे लाभ उठायेगे।

––नागरीप्रचारका।

भाषा सरल और शुद्ध हिन्दी है। कहानियों हृदयाकर्षक और निर्दोष हैं। औपन्यासिक साहित्यके प्रेमियोंको इसे अवश्य पढना चाहिए।

––सरस्वती।

––आख्यायिकायें सबकी सब अच्छी और मनोहारिणी हैं।

––मनोरंजन।


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आँखकी किरकिरी।

सवा लाख रुपयेका पारितोषिक (नोवेल प्राइज) प्राप्त करने- वाले कविसम्राट् डा॰ रवीन्द्रनाथके प्रसिद्ध उपन्यासका अनुवाद। अनुवादक, पं॰ रूपनारायण पाण्डेय। मूल्य १॥)

––यह उपन्यास बहुत ही मनोरंजक और सुशिक्षादायक है। समाजके एक अंशविशेषका इसमें जीता जागता चित्र है। "हिन्दीमें इसकी जोड़का एक भी उपन्यास नहीं। इसमें मनुष्यके स्वाभाविक भावोंके चित्र खीच कर उनके द्वारा मित्रकी तरह-आत्माकी तरह शिक्षा दी गई है। इसमें भावोंके उत्थान-पतन और उनकी विकाशशैली वर्षा में पहाड़ों परसे गिरते हुए झरनोंकी तरह बहुत ही मनोहारिणी है। हृदयके स्वाभाविक उदार, छोटी छोटी घटनाओंका बड़ी बड़ी घटनाओके बीच हो जाना और उनके चकित कर देनेवाले परिणाम बड़े ही स्पृहणीय हैं।"

––सरस्वती

 

चौबैका चिट्ठा।

स्वर्गीय बाबू बंकिमचन्द्रके 'कमलाकान्तेर दफ्तर' का अनुवाद।
अनुवादक–पं॰ रूपनारायण पाण्डेय। मू॰॥///)

––मूलग्रंथ जैसा प्रतिभापूर्ण है, वैसा ही उत्तम अनुवाद भी हुआ है। कल्पनाशक्तिका अच्छा उपयोग किया गया है–हास्यरसमय और विनोदपूर्ण है।इसमें सन्देह नहीं कि यह ग्रन्थ हिन्दी साहित्यका एक रत्न समझा जायगा और रसिक विद्वान् इसे चावसे पढ़ेंगे।

––रघुवरप्रसाद द्विवेदी. बी. ए.।

––बंकिम बाबूने बड़ी खूबीसे इसमें सामाजिक बुराइया दिखाई है। कहीं कहीं हास्यरसका विलक्षण मिश्रण भी उन्होंने किया है। अनुवादक महाशयने मूलकी खूबियोंकी रक्षा योग्यतापूर्वक की है। भाषा सरल और शुद्ध है। पुस्तक बड़ी मनोरंजक है और साथ ही शिक्षादायक भी है।

––सरस्वती।

––चौबेका चिट्ठा जैसा चित्ताकर्षक है वैसा ही उपयोगी भी है। इसमें सरलता और उपदेश दोनों है। पढ़नेसे देश और समाजविषयक अनुभव बढ़ता [ १२८ ]है। इसकी शिक्षायें अप्रत्यक्ष होकर भी बड़ी ही मर्मस्पर्शिनी है और यही उसकी महत्ता है। पुस्तक सर्वथा आदरणीय है।

––मैथिलीशरण गुप्त।

––इस ग्रंथ में लेखकने चिदानन्द चौबेका रूप धारण करके भिन्नभिन्न विषयों-पर अपने आन्तरिक भाव प्रकट किये हैं। ईश्वर, प्रकृति, मृत्यु जैसे जटिल विषयोंसे लेकर भारतकी राजनीति, अदालतोंकी जिरह आदि हलके विषयों तककी मनोरंजक व्याख्या इस ग्रन्थमें की गई है। पर वस्तुतः यह एक तरहका गंभीर हास्यरसपूर्ण काव्य है। बंकिम उपन्यास लेखक था, कवि था, दार्शनिक था और विनोदपूर्ण लेखकोंके लिखने में भी सिद्धहस्त था। इस ग्रन्थमें वह अपने सभी रूपों में प्रकट हुआ है।

––सद्धर्मप्रचारक।

 

मितव्ययिता।

डॉ॰ सेमुएल स्माइल्स साहबके 'थिरिफ्ट' का हिन्दी अनुवाद। अनुवादक बाबू दयाचन्द्रजी गोयलीय, बी. ए.।

––बड़ी अच्छी पुस्तक है। हिन्दी साहित्यमें इसे एक रत्न समझना चाहिए। अच्छी छपी है। सुन्दर जिल्द दी हुई है। इस पुस्तकका सार यह है कि मनुष्य अपनी शक्ति, अपने श्रम, अपने उद्योग और अपने धनको स्वार्थपरता और वासनाओंकी तुष्टिमें न लगाकर अच्छे कामों में लगावे। इसके लिए आलस, अविचार, अहंकार, अविवेक, असंयम आदि अनेक अरियोंका सामना करना पड़ता है। इनमेंसे असंयम सबसे बुरा और बड़ा शत्रु है। इस पुस्तकमें इन सब शत्रुओं पर विजय पानेके सैकड़ों उपाय बतलाये गये है। अतएव यह सर्वथा उपादेय है। भाषा भी इसकी अच्छी है; क्लिष्ट नही।

––सरस्वती।

––मितव्ययिता प्रत्येक गृहस्थको पढ़नी चाहिए। यही नहीं, उसके सिद्धान्तों सें लाभ भी उठाना चाहिए। वह इसी योग्य है। उसके वाक्य सोनेके अक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं।

––मैथिलीशरण गुप्त।

––यह पुस्तक सभी के लिए बड़ी उपयोगी है। पाठयपुस्तकोमें इसे अवश्य शामिल करना चाहिए।

––श्रीव्येंकटेश्वर समाचार।