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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२३७

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तीसरा भाग मगध (३१ ई० पू० से सन् ३४० ई० तक) और गुप्त भारत (सन ३५० ई०) राजाधिराज पृथिवीमवित्व- दिवं-जयत्य-अप्रतिवार्यवीर्यः। अर्थात् अप्रतिवार्य (जिसका निवारण या सामना न किया जा सके) शक्ति रखनेवाले महाराजाधिराज देश की रक्षा करके स्वर्ग को जीतते हैं । -समुद्रगुप्त का अश्वमेधवाला सिक्का । आसमुद्रक्षितीशानाम् आनाकरथ-वर्त्मनाम् । -कालिदास। ११. सन् ३१ ई० पू० से २५० ई. तक का मगध का इतिहास और गुप्तों का उदय ) सन् २७५ से ३७५ ई० तक) ६ १०६. पुराणों में कहा गया है कि जब कण्वों का पतन हो गया, तब मगध पर आंध्रों ( सातवाहनों) का राज्य हो गया। इलाहाबाद जिले के भीटा नामक स्थान पाटलिपुत्र में आंध्र में खुदाई होने पर सातवाहनों के जो सिक्के और लिच्छवी मिले हैं, उनसे पुराणों के इस कथन का समर्थन होता है। पटने के पास कुम्हराड़ नामक स्थान में मेरे सामने डाक्टर स्पूनर ने जो एक सातवाहन सिक्का खोदकर निकाला था, उसे मैंने पढ़ा है। जब मगध में कण्वों