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पृष्ठ:अणिमा.djvu/३७

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सहस्राब्दि

(विक्रमीय प्रथम १००० सम्वत्)

विक्रम की सहस्राब्दि का स्वर
कर चुका मुखर
विभिन्न रागिनियों से अम्बर।

आ रही याद
वह उज्जयिनी, वह निरवसाद
प्रतिमा, वह इतिवृत्तात्मकथा,
वह आर्यधर्म, वह शिरोधार्य वैदिक समता,
पाटलीपुत्र की बौद्ध श्री का अस्त रूप,
वह हुई और भू-हुए जनों के और भूप,
वह नवरत्नों की प्रभा-सभा के सुदृढ़ स्तम्भ,
वह प्रतिभा से दिङ्गनाग-दलन,
लेखन में कालिदास के अमला-कला-कलन,
वह महाकाल के मन्दिर में पूजोपचार,
वह शिप्रावात, प्रिया से प्रिय ज्यों चाटुकार।