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पृष्ठ:अणिमा.djvu/८०

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"संन्यासी होने पर
देश-काल-पात्रता से
दूर हम हुए हैं,
रामकृष्णमय जीवन,
सर्व जनों के लिए।
ब्राह्मण के गृह जिनका
शुभ जन्म हुआ था,
उनके दर्शनों को
हम या विवेकानन्द
नहीं गये थे वहाँ;
जो थे परमात्मलीन
त्यागी-योगी सिद्धेश्वर,
उन्हीं प्रवर से सीखें
ली हैं हम लोगों ने
विगत जाति-कुल से।"
यद्यपि उन मधुपुष्प शब्दों पर बैठकर
शान्त हुए द्विज-भ्रमर,
फिर भी बर्र जैसे एक गूँजते ही रह गये—