सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

माठवां अध्याय : मारवायोग अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत किसे कहते हैं ? अधिदेव क्या कहलाता है ? १ अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन । प्रयाण काले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥२॥ हे मधुसूदन ! इस देहमें अधियज्ञ क्या है और किस प्रकार है ? और संयमी आपको मृत्युके समय किस तरह पहचान सकता है ? श्रीभगवानुवाच अक्षर ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते । भूतभावोद्वकरो दिसर्गः कर्मसज्ञितः ।। ३ भीमगवान बोले- जो सर्वोत्तम अविनाशी है वह ब्रह्म है; प्राणी- मात्रमें अपनी सत्तासे जो रहता है वह अध्यात्म है और प्राणीमात्रको उत्पन्न करनेवाला सृष्टिव्यापार कर्म कहलाता है। ३ अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् । अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां अधिभूत मेरा नाशवान स्वरूप है। अधिदैवत उसमें रहनेवाला मेरा जीवस्वरूप है। और हे मनुष्य- वर ॥४॥