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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१४६

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प्रमाक्तियोग , सब वृक्षोंमें अश्वत्थ (पीपल) मैं हूं, देवर्षियोंमें नारद मैं हूं, गंधर्वोमें चित्ररथ में हूं और सिद्धोंमें कपिल- मुनि मैं हूं। उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥२७॥ अश्वोंमें अमृतमेसे उत्पन्न होनेवाला उच्चैःश्रवा मुझे जान। हाथियोंमें ऐरावत और मनुष्योंमें राजा मैं हूं। २७ आयुधानामहं वचं धेनूनामस्मि कामधुक् । प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥२८॥ हथियारोंमें वज्र में हूं, गायोंमें कामधेनु मैं हूं, प्रजाकी उत्पत्तिका कारण कामदेव में हूं, सोमें वासुकि २८ अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥२९॥ नागोंमें शेषनाग मैं हूं, जलचरोंमें वरुण मैं हूं, पितरों- में अर्यमा मैं हूं और दंड देनेवालोंमें यम मैं हूं। प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥३०॥ दैत्योंमें प्रह्लाद मैं हूं, गिननेवालोंमें काल में हूं, पशुओंमें सिंह मैं हूं, पक्षियोंमें गरुड़ मैं हूं। पवनः पवतामस्मि शस्त्रभृतामहम् । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥ मैं हूं। रामः