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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५२

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मनासक्तियोग श्रीमगवान बोले-- हे पार्थ ! मेरे सैकड़ों और हजारों रूप देख । वे नाना प्रकारके, दिव्य, भिन्न-भिन्न रंग और आकृति- 7 वाले हैं। ५ w पश्यादित्यान्वसन्रुद्रानश्विनी मरुतस्तथा । बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ ६॥ हे भारत ! आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, दो अश्विनी- कुमारों और मरुतोंको देख । पहले न देखे गये, ऐसे बहुतसे आश्चर्योंको तू देख । इहकस्थं जगत्कृत्स्न पश्याद्य सचराचरम् । मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्रष्टुमिच्छसिह॥ ७ ॥ हे गुडाकेश ! यहां मेरे शरीरमें एकरूपसे स्थित समूचा स्थावर और जंगम जगत तथा और जो कुछ तू देखना चाहता हो वह आज देख । न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा । दिव्य ददामि ते चक्षु पश्य मे योगमश्वरम् ॥८॥ इन अपने चर्मचक्षुओंसेतू मुझे नहीं देख सकता। तुझे मैं दिव्य चक्षु देता हूं। तू मेरा ईश्वरीय योग देख । ८ संजय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः । दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥ ९॥