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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१६

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२ अनासक्तियोग - कौरव अर्थात् आसुरी वृत्तियां । पांडुपुत्र अर्थात् दैवी वृत्तियां । प्रत्येक शरीरमें भली और बुरी वृत्तियोंमें युद्ध चलता ही रहता है, यह कौन नहीं अनुभव करता? संजय उवाच दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा । आचार्यमुपसंगम्य राजा राजा वचनमब्रवीत् ॥२॥ संजयने कहा- उस समय पांडवोंकी सेना सजी देखकर राजा दुर्योधन आचार्य द्रोणके पास जाकर बोले २ पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महती चमूम् । व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।। ३ ।। हे आचार्य ! अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्नद्वारा सजाई हुई पांडवोंकी इस बड़ी सेनाको देखिए। ३ अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ ४ ॥ यहां भीम, अर्जुन-जैसे लड़नेमें शूरवीर धनुर्धर, युयुधान (सात्यकि), विराट और महारथी द्रुपदराज, ४ धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैन्यश्च नरपुङ्गवः ।।५।।