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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१९२

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अनासक्तिबोच रजोगुणमें मृत्यु होनेपर देहधारी कर्मसंगीके लोकमें जन्मता है और तमोगुणमें मृत्यु पानेवाला मूढ़योनिमें जन्मता है। १५ टिप्पणी-कर्मसंगीसे तात्पर्य है मनुष्यलोक और ' मूहयोनिसे तात्पर्य है पशु इत्यादि लोक । कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम् । रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम् ॥१६॥ सत्कर्मका फल सात्त्विक और निर्मल होता है। राजसी कर्मका फल दुःख होता है और तामसी कर्मका फल अज्ञान होता है। टिप्पनी-जिसे हम लोग सुख-दुःख मानते हैं यहां उस सुख-दुःखका उल्लेख नहीं समझना चाहिए । सुखसे मतलब है आत्मानंद, आत्मप्रकाश । • इससे जो उलटा है वह दुःख है। १७वें श्लोकमें यह स्पष्ट हो जाता है। सत्त्वात्संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च । प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥१७॥ सत्त्वगुणमेसे ज्ञान उत्पन्न होता है। रजोगुणमेसे लोभ और तमोगुणमेसे असावधानी, मोह और अज्ञान उत्पन्न होता है। १७ -