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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१९५

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चौदह प्रयास मजयविभागयोग है, जिसे गुण विचलित नहीं करते, गुण ही अपना काम कर रहे हैं यह मानकर जो स्थिर रहता है और विचलित नहीं होता, जो सुखदुःखमें सम रहता है, स्वस्थ रहता है, मिट्टीके ढेले, पत्थर और सोनेको समान समझता है, प्रिय अथवा अप्रिय वस्तु प्राप्त होनेपर एक समान रहता है, ऐसा बुद्धिमान जिसे अपनी निंदा या स्तुति समान है, जिसे मान और अपमान समान है, जो मित्रपक्ष और शत्रुपक्षमें समानभाव रखता है और जिसने समस्त आरंभोंका त्याग कर दिया है, वह गुणातीत कहलाता है। २२-२३-२४-२५ टिप्पणी-२२ से २५ तकके श्लोक एकसाथ विचारने योग्य हैं। प्रकाश,प्रवृत्ति और मोह पिछले श्लोक- में कहे अनुसार क्रमसे सत्त्व, रजस् और तमस्के परिणाम अथवा चिह्न हैं। कहनेका तात्पर्य यह है कि जो गुणों- को पार कर गया है उसपर उस परिणामका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पत्थर प्रकाशकी इच्छा नहीं करता, न प्रवृत्ति या जड़ताका द्वेष करता है। उसे बिना चाहे शांति है, उसे कोई गति देता है तो वह उसका द्वेष नहीं करता। गति देनेके बाद उसे ठहरा करके रख देता है तो इससे, प्रवृत्ति-गति बंद हो गई, मोह- जड़ता प्राप्त हुई, ऐसा सोचकर वह दुःखी नहीं होता,