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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२०३

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. पाहवा अन्याय : पुल्वोत्तमयोल १८५ टिप्पती-इसमें और नवें अध्यायमें दुराचारीको भगवानने जो वचन दिया है उसमें विरोध नहीं है। अकृतात्मासे तात्पर्य है भक्तिहीन । स्वेच्छाचारी, दुरा- चारी जो नम्रतापूर्वक श्रद्धासे ईश्वरको भजता है वह आत्मशुद्ध हो जाता है और ईश्वरको पहचानता है। जो यम-नियमादिकी परवाह न कर केवल बुद्धिप्रयोगसे ईश्वरको पहचानना चाहते हैं, वे अचेता-चित्तसे रहित, रामसे रहित, रामको नहीं पहचान सकते । यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नीतत्तेजो विद्धि मामकम् ॥१२॥ सूर्यमें विद्यमान जो तेज समूचे जगतको प्रकाशित करता है और जो तेज चंद्रमें तथा अग्निमें विद्यमान है, वह मेरा है, ऐसा जान । १२ गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा । पुष्णामि चौषधीःसर्वाःसोमो भूत्वा रसात्मकः ॥१३॥ पृथ्वीमें प्रवेश करके अपनी शक्तिसे मैं प्राणियोंको धारण करता हूं और रसोंको उत्पन्न करनेवाला चंद्र बनकर समस्त वनस्पतियोंका पोषण करता हूं। अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः । प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥१४॥ प्राणियोंके शरीरका आश्रय लेकर जठराग्नि होकर