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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२१

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पहला अन्याय भवुनविषारयोग देखू और जानूं कि इस रणसंग्राममें मुझे किसके साथ लड़ना है। २२ योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥२३॥ दुर्बुद्धि दुर्योधनका युद्धमे प्रिय करनेकी इच्छा- वाले जो योद्धा इकट्ठे हुए हैं उन्हें मैं देखू तो सही।" २३ संजय उवाच एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत । सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापवित्वा रथोत्तमम् ।।२४।। भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् । उवाच पार्थ पश्यतान्समवेतान्कुरूनिति ॥२५॥ संजयने कहा- हे राजन् ! जब अर्जुनने श्रीकृष्णसे यों कहा तब उन्होंने दोनों सेनाओंके बीचमें सब राजाओं और भीष्म-द्रोणके सम्मुख उत्तम रथ खड़ा करके कहा- "हे पार्थ ! इन इकट्ठे हुए कौरवोंको देख।” २४-२५ तत्रापश्यस्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान् । आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन् पुत्रान्पोत्रान्सखीस्तथा ॥२६॥