सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

.. मानके, तिरस्कारसे दिया हुआ दान, तामसी कहलाता २२ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मपस्त्रिविधः स्मृतः । ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा ॥२३॥ ब्रह्मका वर्णन 'ॐ तत् सत्' इस तरह तीन प्रकारसे हुआ है और इसके द्वारा पूर्वकालमें ब्राह्मण, वेद और यज्ञ निर्मित हुए। २३ तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः। प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम् ॥२४॥ इसलिए ब्रह्मवादी 'ॐ' का उच्चारण करके यज्ञ, दान और तपरूपी क्रियाएं सदा विधिवत् करते हैं । २४ तदित्यनभिसंधाय फलं यशतपःक्रियाः । दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङक्षिभिः॥२५॥ और, मोक्षार्थी 'तत्'का उच्चारण करके फलकी आशा रखे बिना यज्ञ, तप और दानरूपी विविध क्रियाएं करते हैं। २५ सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते । प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥२६॥ सत्य और कल्याणके अर्थमें 'सत्' शब्दका प्रयोग होता है। और हे पार्थ ! भले कामोंमें भी 'सत्' सब्द व्यवहृत होता है।