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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६२

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१५५ अप्सरा बड़े भाई को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। अँगरेजी में नंदन ने कहा, तुम्हारी बहूजी से तुम्हारे अजीब विवाह की बातें सुनकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई । राजकुमार ने नजर झुका ली। अँगरेजी का मर्म शायद काशी-वास की कथा हो, जो अभी चल रही थी, यह समझकर चंदन की मा ने कहा, "देखो न भैया, न जाने कब जीव निकल जाय, करारे का रूख, कौन ठिकाना, चाहे जब महराय के बैठ जाय, यही से अब जितनी जल्दी बाबा विश्वनाथजी की पैर-पोसी मा हाजिर हुसकी, वतनै अच्छा है।" ___"हाँ, अम्मा, विचार तो बड़ा अच्छा है।" राजकुमार ने जय स्वर ऊँचा करके कहा। ले जाय की फुर्सत नाही ना कोहू का, यह छिबुलका पैदा होयके साथै आफत बरपा करै लाग," चंदन की तरफ देखकर माता ने कहा, "यहि के साथ को जाय !" ___ "अम्मा, मैं कल घर जाऊँगा, अम्मा ने बुलाया है, आप चलें, तो आपको काशी छोड़ दूं।" राजकुमार ने कहा। वृद्धा गद्गद हो गई। राजकुमार को आशीर्वाद दिया। नंदन से कल ही सब इंतजाम कर देने के लिये कहा। ___ तो तुम लौटोगे कब ?" तारा ने राजकुमार को व्यग्रता से देखते हुए पूछा । “चार-पाँच रोज में लौट आऊँगा।" भोजन तैयार था। ताराने राजकुमार और चंदन को नहाने के लिये कहा। महरी दोनो की धोतियाँ गुसलखाने में रख पाई। राजकुमार और चंदन नहाने के लिये गए। ____ भोजन कर दोनो मित्र आराम कर रहे थे। तारा आई । राजकुमार से कहा-"रज्जू बाबू, अम्मा को मिलने के लिये पड़ोसिनों के यहाँ भेज दूंगी, अगर कल तुम लिए जाते.हो; आज शाम को उसे यह ले आओ।" ____ अच्छी बात है।' राजकुमार ने शांति से कहा । चंदन ने पेट में उँगली कोंच दी। राजकुमार हँस पड़ा।