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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/४७

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अप्सरा


उसी रोज उसके पैरवीकार मिस्टर जयनारायण से उसकी भलमसाहत के सुबूत लेना उन्होंने प्रारंभ कर दिया । सुबूत गुजरते वक्त कनक एकाग्र चित्त से मुकट्टमा देख रही थी। राजकुमार के मन का एकाएक परिवर्तन होगया । वह अपनी भलाई के प्रमाणों को पेश होते हुए देखकर चकित हो गया। कुछ उसकी समझ में न आया। उस समय का कनक का उत्साह देखकर वह अनुमान करने लगा कि शायद यह सब कार्रवाई उसी की की हुई है। उसकी भावना उसकी तरफ से बदल गई। आँखों में श्रद्धा आ गई, पर दूसरे ही क्षण, उपकृत द्वारा छटाए जाने की कल्पना कर, वह बेचैन हो गया। उसके जैसे निर्भीक वीर के लिये, जिसने स्वयं ही यह सब श्राफत बुला ली, यह कितनी लज्जा की बात है कि वह एक दूसरी बाजारू खी की कृपा से मुक्त हो । क्षोम और घृणा से उसका सवींग मुरझा गया। जोश में था उसने अपने खाने से साहब को आवाज़ दी। ___"मैंने कुसूर किया है।" मैजिस्ट्रेट लिख रहे थे। नजर उठाकर एक बार उसे देखा, फिर कनक को। ___ कनक घबरा गई । राजकुमार को देखा, वह निश्चित दृष्टि से साहब की ओर देख रहा था। कनक ने वकील को देखा । राजकुमार की तरफ फिरकर वकील ने कहा, तुमसे कुछ पूछा नहीं जा रहा, तुम्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं। फैसला लेकर हँसते हुए वकील ने कनक से कहा, राजकुमार छोड़ दिए गए। एक सिपाही ने सीखचोंवाली कोठरी की ताली खोल दी। राजकुमार निकाल दिया गया। वकील को पुरस्कृत कर, राजकुमार का हाथ पकड़ कनक अदालत से बाहर निकल चलो। साथ-साथ कैथरिन भी चलीं। पीछे-पीछे हँसती हुई कुछ जनता। रास्ते पर, एक किनारे, कनक की मोटर खड़ी थी। राजकुमार और