सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८१
प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास


दंड इक्ष्वाकु के बेटों में सबसे छोटा था। वह अनपढ़ निकला और उसने अपने बड़े भाइयों का साथ न किया इससे उसके शरीर में तेज न रहा। पिता ने उसका नाम दंड रक्खा और उसे विन्ध्याचल और शैवल के बीच का देश का राज दिया। दंड ने वहां मधुमान् नाम नगर बसाया और शुक्राचार्य को अपना पुरोहित बनाया। राजा दंड ने बहुत दिनों तक निष्कण्टक राज किया। एक बार चैत के महीने में राजा दंड शुक्राचार्य के आश्रम को गया। वहां वह शुक्राचार्य की ज्येष्ठा कन्या अरजा को देखकर उस पर मोहित हो गया। अरजा ने उत्तर दिया कि यदि तुम हमको चाहते हो तो हमारे पिता से कहो। परन्तु उस कामान्ध राजा ने न माना और उसके साथ बलात्कार किया। अरजा रोती हुई शुक्राचार्य की राह देखती रही और जब वह आये तो उसने सारा वृत्तान्त कहा। शुक्राचार्य ने क्रोधित होकर श्राप दिया और सात दिन इतनी धूल बरसी कि दंड का सौ कोस का राज्य उसके परिवार समेत नष्ट होगया। तभी से उस स्थान का नाम दंडकारण्य पड़ा।[१]

(३) शशाद—इसका पहिला नाम विकुक्षि था। एक बार इसने यज्ञ के लिये जो पशु मारे गये थे उनमें से एक शश (खरहा) भूनकर खा लिया इससे इसका नाम शशाद पड़ गया। बौद्ध ग्रन्थों में लिखा है कि तीसरे इक्ष्वाकुवंशी राजा (ओक्काकु-विकुक्षि) के देश निकाले लड़कों ने हिमालय की तरेटी में जाकर कपिल मुनि की बताई हुई धरती (बथु वस्तु) पर कपिलवथु (कपिलवस्तु) नगर बसाया था। कपिल मुनि बुद्धदेव के एक अवतार थे और हिमालय तट पर एक तालाब के किनारे शकसन्द या शकवनसन्द में कुटी बनाकर रहते थे।


  1. बा॰ रा॰ ७, ८०, ८१ इस कथा को निर्मूल न समझना चाहिये। गोंडे के ज़िले में राजा सुहेलदेव बड़े प्रसिद्ध बीर थे जिन्होंने सैयद सालार (ग़ाज़ीमियाँ) को परास्त किया था। उनके राज्य का एक अंश सुहेलवा का धन कहलाता है और उनके विनाश की भी कथा कुछ ऐसी ही है।