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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२०८

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अयोध्या का इतिहास

साथ दरे-दौलत पर लाये, उस समय बादशाह बेगम और मुन्नाजान एक हज़ार हथियारबन्द सिपाहियों को लेकर महल में घुस आये। मुन्नाजान ने कहा कि सलतनत हमारी है और तख्त पर बैठ कर यह हुक्म दिया कि मुहम्मद अली शाह उसका बेटा अजमदअली शाह और उसके पोते वाजिदअली का बध कर दिया जाय। राजा बख़तावरसिंह ने बड़ी बुद्धिमानी से मुहम्मदअली शाह के परिवार को छिपाया। इतने में मड़िआवँ की छावनी से सेना आ गई। मुन्नाजान और बादशाह बेगम पकड़ लिये गये और मुहम्मदअली शाह तख्त पर बैठाये गये। मुहम्मदअली शाह ने बड़ी कृतज्ञता प्रकाश की और नानकार और गाँव और माफ़ी और जागीर देकर उन्हें मेहदौना के राजा की पदवी दी। इसी समय बख़तावर सिंह को वह तलवार दी गई जिसे कि ईरान के बादशाह नादिरशाह ने दिल्ली के बादशाह मुहम्मदअली शाह को उपहार में दिया था और मुहम्मदशाह से नव्वाब सफ़दरजंग ने पाया था।

सर महाराजा मानसिंह बहादुर, के॰ सी॰ एस॰ आई॰,
क़ायमजंग

राजा दर्शनसिंह के मरने पर सारे राज में गड़बड़ मच गया। जिन ताल्लुकेदारों का राज राजा बख़तावर सिंह ने ले लिया था, सब बिगड़ गये और अपनी-अपनी ज़िमींदारी दबा बैठे। राजा दर्शनसिंह के दो बेटे राजा रामअधीन सिंह, राजा रघुबर सिंह और कुछ और प्रतिष्ठित अधिकारियों ने यह निश्चय किया कि अपना देश छोड़ कर अंग्रेजी राज में चले जायें। जो धन अपने पास है उससे दिन कट जायँगे। उस समय महाराजा मानसिंह जिनका पूरा नाम हनुमानसिंह था, केवल १८ वर्ष के थे। उनकी छोटी अवस्था के कारण उनकी कोई सुनता न था। महाराजा मानसिंह में उत्साह भरा हुआ था। उन्होंने यह सोचा कि बादशाही को छोड़ कर अंग्रेजी राज में जाकर रहना, खाना और पाँव फैला कर सोना बनियों का काम है। हमारे पूर्व-पुरुषों