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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२६३

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चन्द्रवंश

तब सप्तर्षियों ने उनकी पालकी उठाई। उनमें अगस्त्य कुछ मन्द मन्द चलते थे। उनको तेज चलाने के लिये मद में आकर नहुष ने “सर्प सर्प" कहा । बस अगस्य कुपित होकर बोले "स्वयं सर्प हो जात्रो।" इस प्रकार वह राजा अजगर हो कर स्वर्ग से गिर गया।

पुराणकार की इस कथा का एक ऐतिहासिक गूढ़ार्थ निकलता है। वह यह है कि राजा नहुष अपने वाहुबल से निःसन्देह बड़ा भारी राजा हो गया। यहां तक कि प्रसिद्ध महर्षि लोग भी उसकी सेवा करना अपना अहोभाग्य समझते थे। परन्तु उसके मदोन्मत्त हो जाने पर अगस्त्य ने उसे साम्राज्य पद से च्युत करके जंगलों में प्रवास का दण्ड दिया। वह वाधित हो कर नागवंशियों में जा मिला और नाग कहाने लगा। इस बात का प्रमाण ग्रीक इतिहासलेखक हेरोडोटस के लेख से भी मिलता है। उसने मिसर या इजिपृ के प्राचीन इतिहास में लिखा है कि वहाँ का प्राचीन राजा डायोनिसस था जो पूर्व देश से आकर रहा। वहाँ उसने बड़ी भारी विजय की और वहाँ के लोगों को जो बहुत असभ्य थे खेती बाड़ी करने तथा नगर बसाने की शिक्षा दी और सभ्य बनाया, इत्यादि। में हेरोडोटस का डायोनिसस देव नहुष ही प्रतीत होता है।

अस्तु, इस प्रकार नहुष के अजगर या नाग बनकर राज्य से भ्रष्ट हो जाने पर ययाति ही राजगद्दी पर बैठा। ययाति भी बड़ा प्रसिद्ध राजा हुआ। इस के राज्य के चिन्ह अभी तक भी भारत में विद्यमान हैं।

ययातिनगर का अवशेष

जयपुर रियासत में साम्भर झील के तट पर साम्भर नगर बसा हुआ है। वहां दो तालाब और दो मन्दिर हैं, एक शर्मिष्ठा का और दूसरा देवयानी का। वहाँ से ११ मील पर ययाति के यौवनपुर की स्थिति है। जोबरेन का ठिकाना ययाति का यौवनपुर ही है। इस नगरी का भग्नावशेष केवल एक थम्भामात्र अभी तक शेष है जो वहां के मैदान में जोबन के बिल्कुल समीप कुछ किसानों की झोपड़ी के समीप गड़ा