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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२७५

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चन्द्र-वंश

पहुँची। विश्वामित्र जी ने जो एक बार मेनका के फन्द में पड़कर फल पा चुके थे उसको शाप दिया कि तू पत्थर हो जा। यहीं बहुत कड़ी तपस्या करने से उनको ब्रह्मर्षि का पद मिला और वसिष्ठ जी ने भी उन्हें ब्राह्मण स्वीकार कर लिया। विश्वामित्र के कई बेटे थे मधुच्छन्दस्, कट, ऋषभ, रेणु, अष्टक और गालव। विश्वामित्र के ब्रह्मर्षि बनने पर अष्टक कान्यकुब्ज का राजा हुआ। विश्वामित्र ने शुनःशेप को अपना पुत्र मान लिया क्योंकि शुनःशेप बिक चुका था और उसका अपने पैत्रिक कुल से कोई संबंध न था। विश्वामित्र ने शुनःशेप को देवरात की पदवी देकर अपने पुत्रों में जेठा बनाया।

इतिहास की जांच से प्रकट होता है कि विश्वामित्र ब्राह्मण कुल का नाम था और उसी वंश के अनेक ब्रह्मर्षि भिन्न भिन्न अवसरों पर वसिष्ठों से लड़ते रहे।

विश्वामित्र की बहिन सत्यवती कौशकी भार्गव ऋचीक को ब्याही थी, जिसका लड़का जमदग्नि था। यह विवाह बड़े झगड़े से हुआ था। ऋचीक ने गाधिराज से कन्या मांगी। गाधिराज न चाहते थे कि सत्यवती उनके साथ ब्याही जाय और उनसे एक हज़ार श्यामकर्ण घोड़े मांगे। ऋचीक ने वरुणदेव से एक हज़ार घोड़े मांग कर राजा को दे दिये। यह कौशिकी पीछे नदीरूप में प्रकट हुई। जमदग्नि की स्त्री रेणुका इच्वाकुवंशी राजा रेणु की बेटी कही जाती है। परन्तु इस नाम का कोई राजा अयोध्या राजवंश में नहीं है।