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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/३२

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उत्तरकोशल और अयोध्या की स्थिति

घाघरा की उत्पत्ति घुरघुर शब्द से बतायी जाती है।

"श्रीनारायण जगतपति जगहित जगत अधार।
धारो वपु बाराह जब श्रादि पुरुष अवतार॥
शब्द घुरघुरा तब भयो घाघर सरित प्रवाह।"

परन्तु हमको सरयू से प्रयोजन है जिसका नाम ऋग्वेद में भी आया है।

अवध प्रान्त में यह नदी नैपाल से निकल कर बहराइच में आती है। अल्मोड़े में इसे सरयू ही कहते हैं। बहराइच में तीस कोस बहकर कौड़ियाला से मिल जाती है परन्तु इस बात का प्रमाण मिला है कि सरयू पहिले कौड़ियाला से भिन्न धारा में बहती हुई घाघरा में गिरती थी। कहते हैं कि एक अंगरेज ने जो लट्ठों का व्यापार करता था सरयू की धारा टेढ़ी मेढ़ी देखकर उसे कौड़ियाला में मिला दिया। पुरानी धारा अब भी छोटी सरयू के नाम से प्रसिद्ध है और बहराइच से एक मील हटकर बहती है और बहराइच से निकल कर गोंडा जिले में घाघरा में गिरती है। इस संगम का वर्णन आगे किया जायगा।

सरयू घाघरा के संगम के बाद यह नदी घाघरा ही के नाम से प्रसिद्ध है; केवल अयोध्या में इसे सरयू कहते हैं।

अब हम इसी नदी के दोनों तटों पर उत्तरकोशल के आधुनिक खंडों में जो प्रसिद्ध स्थान है उनका वर्णन करेंगे।

लखनऊ––यह आजकल के अवध प्रान्त का सब से बड़ा नगर है और गोमती के तट पर बसा है। लखनऊ लक्ष्मणवती या लक्ष्मणपुर का अपभ्रंश है और प्रसिद्ध है कि इसे लक्ष्मण जी ने बसाया था। मेडिकल कालेज के पास अब भी एक स्थान लछमन-टीला कहलाता है।

बाराबंकी––इस जिले में कोटवा लिखने योग्य स्थान है, यद्यपि उसका रामायण या अयोध्या के इतिहास से संबंध नहीं है। यहाँ भगवद्भक्त जगजीवनदास हुये थे जिनसे जगजीवनदासी पंथ चला।