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अयोध्या का इतिहास


आइने अकबरी में नगरी की लम्बाई १४८ कोस और चौड़ाई ३२ कोस है। इसका अभिप्राय घाघरा के उत्तर के अवध प्रान्त से है। ह्वानच्वांग ने इस प्रदेश का घेर ४००० ली या ६६७ मील बताया है।

कनिंघम के २४ मील के कथन की पुष्टि में एक बात और है कि अयोध्या की परिक्रमा जो कि प्राचीन धार्मिक नगर की सीमा मानी जा सकती है, १४ कोस अर्थात २८ मील या किसी किसी के अनुसार २४ मील की ही है। इस परिक्रमा के भीतर फैज़ाबाद का शहर और आस-पास के गाँव भी आ जाते हैं जैसा कि नक़्शे में दिखाया जायगा। यह बसी हुई बस्ती की सीमा हो सकती है, किन्तु यह कदापि वाल्मीकि की प्राचीन नगरी का घेर नहीं था।

अयोध्या मनु ने निर्मित की थी और वह १२ योजन लम्बी थी और ३ योजन चौड़ी थी। वह सरयू से वेदश्रुति तक फैली हुई थी तो वह वेदश्रुति अयोध्या से २४ मील की दूरी पर होनी चाहिये। इसे आजकल विसुई कहते और यह सुलतानपुर ज़िले से निकल कर आजकल भी फैज़ाबाद ज़िले की सीमा बनाती हुई इलाहाबाद-फैज़ाबाद रेलवे लाइन को खुजरहट स्टेशन से दो मील की दूरी पर काटती हुई अकबरपुर के पास मड़हा से मिल जाती है और वहाँ से इसे टोंस (तमसा) कहते हैं।

अब पूर्वी और पश्चिमी सीमा के संबंध में यदि हम फैज़ाबाद ज़िले के नक़शे की ओर देखें तो मालूम होगा कि इसमें घाघरा के किनारे-किनारे की भूमि जो कभी २५ मील से अधिक चौड़ी नहीं है, आज़मगढ़ से बाराबंकी तक लगभग ८० मील तक फैली हुई है। कनिंघम जिन्होंने कदाचित् रामायण भी नहीं देखा, आइने अकबरी को उद्धृत करते हैं। और फिर ब्राह्मणों की अत्युक्ति पर दो चार बातें कह कर मान लेते हैं कि नगरी आस-पास के भागों को लेकर १२ योजन लम्बी थी। इसमें