क्या फरेगी। अगर आप यह ॒विष्वास रखते है कि अराजकता और ऐसी चीजोंका इलाज अहिसाके द्वार/ हो सकता है तो यह स्वाभाधिक है कि आप अपने आपको, अपने पड़ोसियोंको और ऐसे लोगोंको जिनपर कि आप असर डाल सकते हें, अहिसक रक्षाके लिए
तैयार करेंगे। आपका यहु कहना बिझकुल ठीक है कि कोई भी जिम्मेव/र आदमी आज बेठा-बेठा नहीं देख सकता । हिसक तेयारीके लिए काफी असे पहलेसे तालीस लेमेकी आव-
इधकता है । अहसाकी तैगारीसे गनकों लेयार करनेका सवाल हैँ। इसमें शक नहीं कि अराजकताकी सम्भावना है, सगर आप अहिसक है, तो आप भयभीत नहीं ही जायेगे ।
अराजकता भा रही है,यह माभकर नहीं बेठ जाना चाहिए । जैसे मिष्चिततरूपरों यह जानते हुए कि एक रोज मरना ही है, _म थंठ-लेठे सोचते नहीं रहते कि मृत्यु आ रही हे । अगर बदकिस्मतीसे अराजकता था ही जायभी, तो आप, आपके साथी और आपके अशुयागी उसे रोकनेके लिए अपने जीवनकी अहछुति देदेंगे। जो लोग डाकूऔर बदसाह भाने जागेवालोंकों मारनेका प्रयत्न करते हुए अपनी जान दे देते है, यह कुछ ज्यादा श्रेष्ठ काम करते है, ऐसी बात नहीं है । द्ञागद बहु कुछ कम ही करते हे । बहु अपनी जान खतरेभे डालते है
और उनकी मृत्युके बाद अन्पेरा ही जन्पेरा रह जाता है। इससे भी बुरी बात हैकि 8िसाका जवाब हिंसासे देकर यह हिसाकी अग्निमे ईंधन डालते हैं। जो क्लोग बिना सासना फिये सर
जाते हैबहु जपना पूरा निर्दोष बलिदान वेकर हिंसाफे कोपको शास्त भी कर सकते है। मगर यह सच्चा आहिसक काम तभी हो सकता है,जब आपके हृदयमें यह विश्वास हो कि चोर-डाक्, जिससे आप डरते हैं,दरअसल वहु और आप एक ही है । इसलिए अच्छा तो यह हैकि उसके हाथों आप मरे, बजाय इसके कि बहु आपका अज्ञानी भाई आपके हाथों मरे । हरिजन-सेवक २९
जून, १९४०
झहिसा और पबराहट एक सम्जनसे एक पत्र भेजा है । उसका नीचे दिया हिस्सा पाठकोंके लिए रोचक और बोधप्रद होगा ।
“असहयोगकी पिछली हलचऊमें मैने वबालत' छोड़ दी थी'। १९२५के अन्त फिर
शुरू कर दी । अब भे कांग्रेसका सिर्फ चार आनेका भेग्वर हूँ। कचहरीमें वकालत करता हूँ और भादतन खादी पहनता हैं । जबसे मित्र राष्ट्र हारने लगे है,देशमें घवराहुह पौल़ने छगी' है । ब्रिदेतकी पराजयके परिणागोसे छोग डरते है,उन्हें गृहयुद्ध॒का, साम्प्रदायिक बलबोंका, छूटमारका,
आग लगाने और गृण्बाशाहीका डर है । आप अहिसाके देवता है । कस-से-कर्म पिछले २० वर्षोंसे आपने अहिसावा प्रचार किया है। जहाँतका मेंआपके ेखोंको समझ सका हूँआप बहादुरोंकी श्श्द