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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/३३

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गांधीजी साधन है । लेकिन लोकतंत्र संघ-शासगकी प्राप्तिकी ऐसी आवश्यकताहै, जिससे इसकी सफलताका निश्चय होता है और जिसके बिना यह काममात नहीं हो गवती। इरा घातपर मैं हमेशा बड़ी दिलचस्पीमे ध्यान देता रहा हूँ और निश्चय ही मुझे आश्चर्य है कि आप यह खयाल करते मालूम पड़ते है कि अहिंसात्मक अराहयोगका अमल अपने में ही काफी है और यह आप कभी नहीं कहते कि मनुष्यों , जातियों, धर्मो राष्ट्रों को मिलानेवाली लोकतंत्रीय शासन-पद्धति ही वह लक्ष्य है जिसपर इसे ले जाना चाहिये, हालांकि उसकी प्राप्ति हुदयके आध्यात्मिक परिवर्तनके फलस्वरूप ही संभव है ओर बल या हिंसा अथवा चालाकीरो उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। "भारतीय शासन-विज्ञान के पक्षमें अप्रत्यक्ष रूपसे दलील करने के लिए मैं यह नहीं लिख रहा हूँ, हालांकि उस समस्यासे भी स्पष्ट ही इसका संबंध है। गवर्नमेण्ट आफ इंडिया ऐक्ट लोकतंत्रीय संघ शासन के सिद्धांतका स्पष्टतः एक बहुत अपूर्ण रूप है,जिसको चलाना हो तो रोजीके साथ उसका विकास होना आवश्यक है। उसके लिए जो खास दलील हमेशा मैने दी है वह यह है कि मौजूदा हालतमें प्रान्तों, रियासतों, मुसलमानों और हिन्दुओं को एया सूत्रम पिरोनेवाले एकगात्र वैधानिक समझौतेका वही ऐसा आधार है जिसको अमली रूप दिया जा सकता है और जैसा कि आमतौरपर समझा जाता है उसमे कहीं ज्यादा विकासके बीज उसमें मौजूध है। अगर आपका आध्यात्मिक संदेश लोगों को इसके लिए प्रेरित करें, तो इसका विकास शीघ्रतासे और आसानीसे हो सकता है। गेरा उद्देश्य इस वैधानिक समस्याके बारे में आपकी कोई शयशाप्त करना नहीं है ,लेकिन इस पत्र के पूर्व भागमे जिस बृहत्तर प्रश्नका समावेश है उसका में जरूर अबाम चाहता हूं।" लालथियमका यह पत्र मुझे जनवरीकी शुरुआतमें मिला था, लेकिन आवश्यक कार्योके कारण इससे पहले में इसमें उठाये हुए एक महत्यपूर्ण सवालको चर्चा न कर सका। निश्चित रूपसे अहिंसापर निर्भर समाजमें शासनका रूप क्या हो, इस बारे कुछ लिखने से में जान-बूझकर बचता रहा हूँ। सारा समाज हिंसापर उसी प्रकार कायम है जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षणसे पृथ्वी अपनी स्थिति बनी हुई है। लेकिन जब गुरुत्वाकर्षणके नियमका पता लगा, तो इस शोधके ऐसे परिणाम निकले, जिनके बारेमें हमारे पूर्वजों को कुछ भी ज्ञान न था। इसी प्रकार जब निश्चित रूपसे अहिंसाके नियमानुसार समाजका निर्माण होगा तो उसका बांधा खास-खास बातों में आजसे भिन्न होगा। लेकिन पहलेसे ही मैं यह नहीं कह सकता कि सम्पूर्णतथा हिंसापर निर्भर शासनका रूप कैसा होगा। आज तो हिंसाके नियमकी उपेक्षा करके हिसाको ऐसा स्थान दिया हुआ है मानो वही शाश्वत नियम है। इसलिए इंगलैण्ड और फ्रांसमें जिन लोकतंत्रौंको हम काम करते हुए घेखते हैं वे केवल नामक ही लोकतंत्र है। क्यों कि सभी हिसापर नाजी जर्मनी, फासिस्ट इटली या सोवियत रूससे कुछ ही कम निर्भर है। फर्क सिर्फ यह है कि पिछले तीन घेशों में हिंसा लोकसंत्रीपदेशों को अनिस्मत काही ज्यादा अच्छे रूपमें संगठिस है। फिर भी हम देखते हैं कि शस्त्रास्त्र के मामलेमें एक-यूसरेसे बढ़ जानेको भान पागलों की तरह होड़ मान रही है । और संघर्ष