अन्य दो दलीलें व्यवहारिक हैं। शान्तिवादियोंको ऐसी कोई बात तो न फरनी चाहिये जिससे उनकी सरकारोंके कमजोर पड़नेकी सम्भावना हो ! लेकिन इस भयसे उन्हें यह दिखा
बेवेफे एकसात्र कारगर अवसरफों नहीं गंवा देना चाहिये कि सभी तरहकी युद्धोंकी व्यर्थतामें झमका अटूद घिददास है। अगर उनकी शरकारें पागछपनके साथ युद्ध विरोधियोंकों शहीद बनाने लगें, तो उन्हें अपनी कर्सीकें फलस्वरूप होनेवाली अश्ान्तिके परिणामोंकों सहना ही पड़ेगा।
प्रजातंन्रोंको चाहिये कि वे व्यक्षिगत रूपसे अहिसाका पालन फरनेकी स्वतंत्रताका आवर करें। ऐसा करनेपर ही संस्ारके लिये आज्ञा-किरणोंका उदय होगा। हरिजन सेवक
१५ अप्रैल, १९३९
नया तरीका विहार प्रान्तान्तर्गत चम्पारन जिलेवो वृन्दावन गाँवमें होनेवाले गान्षी-सेवा-सं पकेपांचवें अभिवेश्नमें गास्धीजीने जो प्रवचन दिया, उसका सारांश नीचे दिया जाता है। राजकोटसे चलते चकक्त जो वक्तव्य मैंने दिया था,उसीकी एक-दो बातोंकी मेंइस भाषणमें
चर्चा करूँगा किशोर लालने अहिसाके मुख्य फलितार्थोका विस्तरसे जो चर्णन किया हैबहु छीक ही है, याने हमारी हिसासे हमारे प्रति हमारे विरोधीफा रुख सख्त होनेफे बजाय नरस होता चाहिये, इससे उसका दिछ पिघकना चाहिये और उसके अन्दर हमारे लिये सहामुभूतिकी भाषना जागृत होनी चाहिये। हिसाका काम जो कुछ उसके रास्तेमें आये उस सबको नण्ट करना है, तो अहिसाका काम हिसाके मुंहमेंअपने आप चले जाना हूँ। भहिसाके बाताबरणमें किसोकों अपनी अधि्साकी अग्नि-परीक्षाक! अवसर नहीं मिलता। उसे तो तभी कसौटी पर कसा जा सकता है जब कि हिंसासे मुकाबला हो। में यहसब जानता हूँ और इसे अमलमे रानेका सदा प्रयत्त करता रहा हैं, लेकिन से यह नहीं कह सकता कि अपने विरोधियोंके बिलपिघलानेमों सदा सफल रहा हूँ ।राजकोटने मेरे मनमें
इस बातक्री बड़ी तीमतासे अनुभूति करा दी है। में अपने भनमें सोच रहा था कि दरबार वीरा चालाका हुदय परिवर्तेत करनेसें हुस अबतक क्यों असफल रहे हैं? इसका सीभा जवान यह हैकि अहिसात्मक झूपसे हमसे उनके साथ व्यवहार नहीं किया है। हमने उन्हेंधुरा भरा कह है,
और सत्याग्रही क्या करते हैँइसपर सेंने पूरा ध्यान नहीं दिया है। मेने अपनी बाणीपर भले ही कान, रफ्खा हो; लेकिन दूसरोंकी वाणी पर सेने घैसा काबू नहीं रम्ल! । श्दर