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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/४६

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अहिसाका मार्ग २४ एप्रिलफो जब यहाँसे सेकलकततेके लिए रघाना हुआ, तब मेने यह कहा था कि

राजकोट मेरे लिए एफ प्रयोगशाला साबित हुआ है। इसका सबसे ताजा प्रमाण मेरी इस घोषणामं है, जो में कर रहा हूँ ।सहयोगियोंके साथ बहुत वाद-विवावके बाद में आज शामकों ६ बजे इस निर्णयपर पहुँचा हूँ फिभारतके चीफ जस्टिस द्वारा दिये हुये निर्णयका से परित्याग कर द्‌

में अपनी गलती स्वीकार करता हूँ । उपवासके अन्तभे मंत्र यह कहा था कि भेरा यह उपवास जितना सफल हुआ है उतना इससे पहलेका और कोई उपचास सफल नहीं हुआ । सगर अब भे देखता हूँ कि वह हिसासे रंजित था। उपवास करके सेने सा्वभाम्न सत्ताकी बस्तंदाजी चाही, ताकि वह ठाकुर राहुबको अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए प्रेरित करे ।

यहु 'अहिसा' का हृदय-परिवर्तंतका सार्ग नहीं है, यह तो हिंसा तथा दबाव! डालनेका सार्ग है । अगर भेरा उपबास ठाकुर साहबके ही प्रति होता और में उनके तथा उसके सलाहकार श्री बीरावाराके हुदयको पिघला सकता और ऐसा करते हुए मर जानेमें भी संतोष सानता

तो सेरा उपचार शुद्ध होता । पेरे रास्तेमें अपर अगणित कठिसाइयाँ न आतीं, तो मेरी आँखें न खुलतीं। दरबार श्री बौरावाका ग्वायर-निर्णयको विलसे नहीं पसन्द करते थे । इसलिए उन्होंने देरी लगाने हुर एक मौकेका लाभ उठाया । निर्णय तो सेरा सागें प्रशास्त करनेके बदले

भुसलमानों और भाषातोंकों मेरे विरुद्ध नाराज करनेंसें बहुत बड़ा कारण बन गया। निर्णयके पहले हम लोग बोस्तोंकी तरह मिले थे। जब भुझपर स्वेषछछासे और बगेर किसी विधारके बधन-भंग करनेका आरोप किया जाता हूँ । यह भामला चीफ ज़स्टिसके पास जानेबाला था

कि वे इस बातका निर्णय कर दे कि में आरोपित बचन-भंगका दोषी हूँया नहीं । भूसलिम काउच्सिल और गिलासियां असोसिएदानके वक्तव्य सेरे सासने हैं । अब सुकि मेंसे ग्वायर-निर्णयसे सिलने घाले लासको छोड़ देगेका लिवयय किया है, अतः उच दोनों

भसामलोंका जबाब देता मेरे लिए जरूरी नहीं रहु गया है । जहाँ तक मेरा ताहलुक है, मुसलभात और भाषात कोई भी चीज ठाकुर साहबसे, जो वे कृपापूर्वक दें, प्राप्त कर सकते हैं। केस तैयार करनेके लिए मेंनें उनको जो तकलीफ दी, इसके लिए में उनसे क्षमा चाहता हूँ।

अपनी कसजोरीकी हालतमं आवश्यक जोर डलवानेके लिए में वायतरायसे क्षमा साँगता हूँ। चीफ जस्टिसको सैते कष्ट पहुँताया, इसलिए उससे भो क्षसा-्याचना फरता हूँ, पर्षोकति सें अच्छी तरह जानता होता, तो उन्हें बहु कष्ट न उठाना पड़ता, जी उन्होंने उठाया और प्र्बीपरि, में ठाकुर साहब भौर श्री वीरावारासे भी कसा चाहता हूँ।

जहाँतक दरबार श्री वौराधालका संबंध है,सुझ्ते यह कबूल करता चाहिए कि अपने हुसरे सहुमोगियोंकी भांति में भी उसके संजंध्म घुरे विनार रखता था। में यहाँ इस ब्रातपर २१७