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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/६३

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गांधीजी स्थराज्य असंभव है । रचनात्मक कार्यक्रमके धिलाफ जो कुछ भी लिखा गया है, उसमें उसके वास्तविक गुण या अधहिसात्यक स्वराज्यफी दृष्टिसे एसके भहत्वके खिलाफ संतोषजनक दलील एक भी नहीं मिली है, बल्कि में मो यह फहनेका साहूुस करता हूँ कि अग्रर सब काँग्रेलयादी अपनी शाधित इस रचनात्मक कार्येक्रमपर केन्द्रित फर दें, तो देशभरमें अहिसाका वातावरण जल्दी ही पेदा हो जायगा जिसकी सो फी रादी सत्याग्रहके लिए आवश्यकता है । डा० लोहियाने संभावित नये कार्य क्रमके रूपसे क्रिसानोंकी हलचलका उल्लेस फिया

हूं । मुझे खेबपुर्वक यह कहना पड़ता है कि अधिकाँश साभलोंभे फिसानोंफों अधिसात्मक कार्यकी शिक्षा नहीं दी जा रहो है। उन्हें तो रूगातार उत्तेजनाकी हालतमें तैयार रपणा जा रहा है और उनयें ऐसो जाताएँ पैदा की जा रही है जो हसात्मक संपरषके बगर फंभी

पूरी नहीं हो| सकतीं । यही जात भजदूरोंके विषयमें फही जा सकती है । मेरा अपना अंधुभव तो मुझे यही बतलाता है कवि सजदूर-किसान बोनोंकी प्रभावकारक अधिसात्मक फार्यके लिए संगठित किया जा सकता है, बशर्ते फि फॉम्रेसबाले ईसानवारीसे इसके लिए प्रथत्त

करें। लेकिन अगर जाहिसात्मक फार्यक्रकी अच्तिम सफऊताओे बारेसें उनका विश्वास ग॑ हो, तो जे ऐसा नहीं कर सकते। इसके लिए जो कुछ जरूरत है बह यही है था गजपूरकफिसानोंकों इसकी उपयुक्त दिक्षा दी जाय। उन्हें यह बतलानेफी जरूरत है फि अगर थे

उपयुक्त झूपसे संगठित हों तो पूंजीपतियोंको अपनी पूँजीसे जो संपत्ति और आसाथश्ा मिलेगी उसमे ज्यादा सम्पत्ति और आसायथत्ञ ने अपने परिश्रमसे प्राप्त कर सकते है।

फर्क सिर्फ इतता ही हुँकि पूंजीपतियोंका रुपयेके बाजारपर नियंत्रण रहता है, जब कि सजदूरोंका मजहुरीकें बाज(रपर उतना भिर्यत्रण नहीं होता । यह जरूर हैकि भजदूरोंके चुने हुए नेताओंने उनकी अच्छी तरह सेघा की होती तो उन्हें उस अवध्य दाफितका अच्छी तरह

भाग हो जाता जो अधिसाकी उपयुक्त शिक्षा मिलनेपर प्राप्त होती है । लेकिन इसके बजाय भजदूरोंकों अपनी माँगें पुरी फरानेफे लिए डरानेवाले उपायोसे काम लेनेपर आधार रखना

सजिख्लाया जा रहा हूँ। जिस तरहकी शिक्षा आज आमतोरपर भजतुरोंकों िलू रही है उससे थे असाती बने रहते हैं और

अंतिम बलके रूपसें हिसापर ही आधार रश्षते हैं।

इस तरह किसानों या सजदूरोंकी वर्तसाथ हुलचलूकों सत्याप्रहुकी तेगारीके लिए नया फार्मेक्रम

मानना भेरे लिए रूंभव नहीं है ।

श्र

अपने आसपास जो कुछ में बेख रहा हूँ, बहू सिद्चय ही अहिसात्मक लड़ाईकी ही नहीं

बल्कि हिसात्मक विस्फोष्की भी तैयारी है,फिर बह चाहें अनजाने जोर बिता चाहे ही क्‍यों

न हो । इसे अगर भेरे पिछले बीस वर्षोके प्रथत्वका फल बतलाकर मुझे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाय लो सुझे अपना वीष स्वीकार करनेसें कोई हिवकिचाहुए नहीं होगी चाहिए । में ही इन पृष्ठोंसें इस बारेसें बहुत कुछ नहीं कह चुका हूँ ? झैकित मेरे बोष-

'इ्वीोकारसे तबतक फीई काम नहीं होगा जबतक उसके फलस्वरूप हम उलदे न लौतें, था

जो गलती हम कर चुके हैउसे दुरुस्त कर के । इसका भतज़ब यह हुआ कि पूर्ण स्वाधो3]

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