भकाशकका वक्तव्य गाँधीजी' अन्थमाकाका यह छठवाँ प्रकाशन प्रंथमालाके दसवें खंड अहिसाका ठृतीय भाग है । अहिसाके सिद्धान्तोंपर पूज्य बापूकी ढोखनीसे जो
अमूल्य विचारधारा जगतको प्राप्त हुई है उसका यह तृतीय संग्रह है । आशा
है कि एक ओर भागमें अहिंसा सम्बन्धी लेख समाप्त हो जायंगे। इस भागके संकछन तथा संपादनमें श्री ठीकाधर शर्मों 'पर्वतीय', श्री विद्यार्ण्य शर्मा तथा श्रीबानेश्वरीम्रसादसे बड़ी सहायता मिली है। हम तीनों सज्नोंके आभारी हैं ।
काशीके असिद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता तथा गांधीभक्त श्री रामसुर्त सिश्र, श्री कृष्णदेव उपाध्याय; स्वर्गीय. श्री बेजनाथ केडिया तथा कारमाइकल पुस्तकालयफें
संग्रहोंसे हमें बड़ी सहायता मिली है। हम उनके भी आभारी हैं । इस भागके अ्रकाशनकी अनुमति देकर श्री जीवनजी डाह्याभाई देसाई
(व्यवस्थापक-ट्रस्टी, 'नवजीवरन' ट्रस्ट, अहमदाबाद ) ने जो पा की है. उसके ढिये हम छतश्ष हैं ।
गांधीजी 'प्रन्थमालामेंअबतक भारतीय नेताओंकी श्रद्धा्नलियाँ दो भाग, अहिंसा संबन्धी लेख तीन भाग, कबियोंकी श्रद्धाज्ढियाँ एक भाग कुछ छ.
खण्ड प्रकाशित हुए हैं | हमने यह क्रम रखा है कि जिस खंडकी सामग्री एकत्र हो जाती है बह खंड प्रकाशित कर दिया जाता है इस कारण खंडोंके
विज्ञापित कऋममें व्यतिक्रम पड़ता हे किन्तु खंडांकी ऋ्रमसंख्या वही रहती हे जो पहिलेसे निश्चित है । क्रमशः सब खंड पूर्ण किे जाय॑गे । हमें' हप॑ है कि मंथमाझाके अबतक प्रकाशित खंडोँंका प्रथम संस्करण
बिलकुल समाप्त होगया । शब द्वितीय संशोधित संस्करण प्रकाशित होरह। है। इस आश्ञातीत अचारसे हमें जो बल, उत्साह तथा साहस मिल रहा है उससे हमें पूरा विश्वास है. कि हम गांधी साहित्यके
अनुष्ठानमें सफल होंगे ।
असार और अचारके शुभ