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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/७१

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कसोटीपर कार्यत्णितिक्षें सदस्ऐेंके साथ चर्चा करते हुए मैने देख! फि जहिता-शत्यसे जिथिश शश्कारके खिलाफ सड़नेफे झागे, उनकी अहिसा कभी नहीं गयधी। सेंसे इस विद्वासकों पिलमें जगह दे

रकक्‍्खी थी कि पंसारफी साथ्ाब्यपादयी सबसे बड़ी एचाके साथ लड़नेयें गत पीस बरसके अधसाके लर्कपुर्ण परिणामको फाँग्रेश-गरनोंने पहुणाय लिया है । लेकिन जहसफे जैसे बड़े-बड़े प्रयोग कल्पित

प्रश्नोंफे लिए भुध्िषालसे ही कोई गुंजाइश होती हूँ। ऐसे प्रदनोंफे उत्तरमें में सब फहा फरता था कि जब हम.व्स्तुतः स्वपंत्रता हासिल्त कर लेंगे तभी हमें यह मालूम होगा कि हुस अपनी रा

अधिसात्यफ तरीकेसे कर सदते हैँथा नहीं। लेकित आज यह प्रदय कल्पित गहँ| है । भिटिश सरफार हुवारे भुआफिक कोई घोषणा करे या न करे, फग्रिसको ऐसे किसी रास्तेका निर्णय करना ही पड़ेगा, जिले कि यह भाश्तपर आक्रमण होनेकी हालएमें अश्तियार करेगी। हाजॉंकि सरफार-

के साथ कोई समझोता न ही,तथ भी काँग्रेसकफों अपयी नीति घोषित करनी ही होगी जौर उसे यह बतलाना पड़ेगा कि आश्रंभण करनेवाले गिरोहका भुफावला वहु हिलाततदा साधनोंसे फरेगा या अहिसात्मक ।

जहाँतक कि मे कार्यसमितिफे सवस्थोंकी गनोयुत्तिकों, खासी पुरी पर्याफे बाय, समय सका हूँ, उसके सबस्थोंका ए्यारू हैकि अधधिलात्मक स्राधनोंके जरिये सशस्त्र आक्रमणसे देक्षकी रक्षा करनेके लिये वे तैयार नहीं हैं। यह इुःखब प्रसंग

है। निरचय ही अपने घरसे शप्रुकीं निफाछ बाहर फरनेके लिये जो

उपाय अण्तियार फिये जाते हैं, उन उपायोंसे जो कि, उसे (शबुकों) घररे बाहर रनेफे फिये अशणितयार किये जादें-न्यूताधिक झूपसे मिलते जुलते होगे ही जाहिएँ। यह पिछला (शक्षाक्ता) उपाय ज्यादा आसान होना चाहिये। बहरहाल, हकीकत यह हैकि हमारी लड़ाई बहुबायकी

अधिसात्मक लड़ाई नहीं रही है। वह तो बुर्बलके निध्किय प्रतिरोधकी लड़ाई रही है। गए घणजह हैकि इस महत्वके क्षणमें हमारे दिलोंसे महिसाकी शाक्तिमें पबलंत अ्रद्धाका फोई स्जेरछ।-

पूर्ण उत्तरनहीं मिला । इसलिए कार्य-समितिने यह बृद्धिसानीकी ही बात कही हैकि वह इस तकेंपूर्ण कव॒म उढानेके जियेतेयार नहीं है ।इस स्थितिमें दुःखफी बात पह है. कि काँग्रेस अगर उस लोगोंके त्ाथ शरीक हो जाती है,जो भारतकी सशस्त्र रक्षाकी आवश्यकतामें विश्वास फरते हैं,तो

इसफा यह अर्थ हुआ फि गत बीस वर्ष योंही चले गये,काँग्रेसचादियोंने निःशरस्त युद्ध विशान सीखगेक्े प्राथमिक कर्सव्यके प्रति भारी उपेक्षा विलायी और मुझे भय है कि इतिहास सुझे ही, छड़ाईफे

सेनापतिके झूपभें दुःखजनक बातके लिये जिस्मेवार वहरायेगा। भबिष्यका इतिहास कहेगा

कि यह तो मुझे पहले ही ४ ख लेता चाहिये था कि राष्ट्र बहवानकी अहिसा नहीं बल्कि फेबल

निर्बंका अहिसालपश मिष्किप प्रतिरोध सीख रहा है,और इसलिये, इतिहासकारके कथनालुसार, « ऑग्रेसलनोंके लिए सेमिक शिक्षा मुझे सुट्दैया कर वेनी चाहिए थी। , श९र