गांधीजी भारतीय प्रामीणोंकों व्यावहारिक रूपसे ऐसी कोई सुविधा नहीं मिली है ।पद्चिसके जिन वेशोंका
उद्योगीकरण हुआ हैथे अन्य राष्ट्रोंका शोषण कर रहे हे,जब कि हिन्दुस्तान स्वयं ही एक शोषित देश है। इसलिए गाँववालोंको अगर आत्मनिर्भर बनना हैतो सबसे स्वाभाविक बात यही हो सकतो
हैकि चर्जे और उससे सम्बन्धित सब चीजोंक पुनरुद्धार किया जाय । यह पुनरद्धार तभी हो सकता है जब कि बुद्धि और वेदभक्ति-बाले स्वार्थश्यागी भार-
तीबोंकी सेना दिलोजानसे गाँवोंमें चर्सेका सन्देश फलानेके कांममें ऊय जाये और भ्रापीणोंकी निस्तेज आँखोंसमें आशा और प्रकाशफी ज्योति जगमगा वे। वास्तचिक सहयोग और बयरफ-
शिक्षाके प्रसारका यह बहुत बड़ा प्रयत्नहै। चर्खेके शान्त किन्तु निध्चितत और ज़ीवनप्रव 'रिवोल्यू्म' की तरह ही इससे शान्त और निश्चित ऋान्ति होती है। चर्खेके बीस बरसके अनुभवने मुझे डे बातका विववास करा दिया हेकि मेने उसके पक्षमें यहाँ जो बलीलें दी हे बह बिल्कुल सही है । चर्खेते गरीब मुसलमानों और हिन्दुओंकी लरूगभग एक समान ही सेवा फी है। इसके हाराकोई पाँच करोड़ रुपया बिना फिसी दिखावे
और शोरगुलके गाँवोंके इन लाखों फारीगरोंकी जेबोर्म पहुँच चुका हे। इसलिए बिसा किसी हिंचकिचाहटके से कहता हूँकि सभी धर्म-विश्वासोंबाले जनसाधा-
रणकी वृष्टिसे चर्खा हमें जरूर स्वराजतक ले जायगा। क्योंकि चर्खा भांवोंको उनके उपयुक्त
स्थानपर पहुँचाकर ऊँच-वीचके भेद-भावकोी नष्द करता हूँ। ' लेकिन चर्खा स्वराज नहीं ला सकता। बल्कि असलियत तो यह हैकि जबतक राष्ट्रका अहिसामें विद्धास न हो तबतके यह -आगे नहीं बढ़ेगा। क्योंकि यह काफी उत्तेजक नहीं है। आजादीफे लिए छटपटामेवाले देशभक्त चर््रंको हल्की सजरसे बेखनेफे आदी हैं। स्पातंत्य-
प्रेमी तो लड़कर विवेशी शासकैका अन्त करनेके जोशमें भरे हुए हैं। वे सारे वोष उसौमें त्रिकालते हैंऔर अपनेमें कोई खराबी नहीं समझते ।थे ऐसे बेशोंके उदाहरण देते हे जिर्हौंने
खूलकी नवियाँ बहाकर अपजादी पापी है। सो अहिसाफे बिना चर्जा बिलकुल ब्रेलुत्फ और बेकार हे ।
१९१९ ई० में भारतके स्वातंत्रय-प्रेसियोंके सामने अहिसा स्वराक-आप्तिके एकसाश्नऔर सिश्चित साधनके रूपभे रखी ययी थी और चर्सा अहिसाके प्रतीकके झूपमें। १९४१में इसे राष्ट्रीय क्षण्डेमें गौरबपूर्ण स्थान सिछा। लेकिन अहिसा हिन्दुस्तानके हृवथकी गहराई तक सहीं शयी, इसलिए ऋणेकों उसका उपयुक्त सहत्त्व कभी नहीं भिल्ा। उसे वहु तबतक सिलेशा भी
नहीं, जबतक कि कांग्रेसजनॉकी भारी तावाद अहिसामें जीवित अरद्धा न रखने छगे जाथ । जम ये ऐसा करेंगे तो बिना किसी दल्लौरूफे खुद ही यह समझ लेंगे कि अहिसाका चेसेंके सिधा और
कोई प्रतीक नहीं है और इसको सर्वेभान्य बनाये बिता अहिसाका कोई प्रत्यक्ष प्रदर्शन नहींहोगा । और यहू तो सभो सालंतें हैँकि अहिलाके बगैर भाहिसात्मक फानून-भंग नहीं हो सकता। मेरी
बलीक्ष गलत हो सकती है। सेरा आधार भो गलत होल्सकता हुँ। लेकित मेरे भ्रो विश्ञार 2३१०