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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९८

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अहिसा दुख होगा, अगर उसकी हार हो। लेकिन जबतक वह हिन्दुस्तानका कब्जा न छोड़े, काँग्रेसका नैतिक बल मिटेनके काम नहीं आ सकता । नैतिक प्रभाव तो अपनी अपरिवर्तित शर्रा पर ही काम करता है। जब मैने खेड़ामें भर्ती की थी, तबकी और पाजको मेरी वृत्तिमें मेरे मित्रको कोई फर्क नजर नहीं आता । पिछली लड़ाईमें नैतिक प्रश्न नहीं उठाया गया था। कांग्रेसने अहिंसाको प्रतिज्ञा उस वक्त नहीं ली थी। मो नैतिक प्रभाव उसका आम जनतापर भाण है वह तब नहीं था। मैं जो करता था, निजी तौरसे करता था। में लड़ाईको कान्फ्रेंसमें भी शरीफ हुआ था, और बावा यूरा करनेके लिए, अपनी सेहतको भी खतरे में डालकर में भती करता रहा। मैने लोगोंसे कहा कि अगर उन्हें हथियारोंकी जरूरत हो, तो फौजी नौकरीके जरिये उन्हें जरूर प्राप्त कर सकते है। लेकिन अगर वह मेरी माँति अहिंसक हो तो मेरी भर्तीकी अपील उनके लिए नहीं थी। जहांतक में जानता था, मेरे दर्शकोंमें एक भी आषमी अहिंसाको माननेवाला नहीं था। उनकी भर्ती होनेकी अनिष्ठाका कारण यह था कि उनके दिलों में ब्रिटेनके लिए वैर-भाव था। लेकिन ब्रिटेन की हुकूमतको खत्म करनेका एक जानल निश्चय धीरे-धीरे इस वर-भावका स्थान ले रहा था। तबसे हालात बदल चुके हैं। पिछली लड़ाई मे हिन्दुस्तानकी ओरसे सार्वजनिक सहा- यता मिलने के बावजूद विटेनको पुत्ति रौलट ऐक्ट और ऐसे ही रूपोंमें प्रभाव हुई। अंग्रेजरूपी खतरेका मुकाबला करनेके लिए कांग्रेसने असहयोगको स्वीकार किया। जलियानवाला बाग, साइमन कमीशन, गोलमेज हांफ्रेंस और थोड़े-से लोगोंको शरारतके लिए सारे बंगालको कुछ- लना, यह सब बातें उसकी यादगार है। जब कि कांग्रेसने अहिंसाफी नीतिको स्वीकार कर लिया है, मेरे लिए मावश्यक नहीं कि में भर्ती के लिए लोगोंके पास जाऊं। कांग्रेसके जरिये मे घोड़े-से रंगछटोंकी अपेक्षा बहुत ही बोहतर सहायता दे सकता हूँ, लेकिन यह जाहिर है कि ब्रिटेनको उसकी परत नहीं। मैं तो बाहता हूँ, पर लाचार हूँ। हरिजन-सेवक ४ मई, १९४० ।