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पृष्ठ:आँधी.djvu/११७

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आँधी


हिन्दू होने का एक दम्भपूर्ण विचार मेरे मन में दृढ़ता से जम गया था तो भी समझदार कुलसम के सामने ईश्वर की कल्पना अपने ढंग की उपस्थित करने का मेरे पास कोई साधन न था। मेरे मन ने ढोंग किया कि मैं नास्तिक हो जाऊँ। जब कभी ऐसा अवसर आता मैं कुलसम के विचारों की खिल्ली उड़ाता हुआ हँस कर कह देता- तो मेरे लिए तुम्हीं ईश्वर हो तुम्हीं खुदा हो तुम्हीं सब कुछ हो। वह मुझे चापलूसी करते हुए देख कर हँस तो देती थी किन्तु उसका रोआ रोआँ रोने लगता।

मैं अपनी गाढ़ी कमाई के रूपये को शराब के प्याले में गला कर मस्त रहता। मेरे लिए वह भी कोई विशेष बात न थी न तो मेरे लिए आस्तिक बनने मे ही कोई विशेषता थी। धीरे धीरे मैं उच्छृंखल हो गया। कुलसम रोती बिलखती और मुझे समझाती किन्तु मुझे ये सब बातें व्यर्थ की सी जान पड़तीं। मैं अधिक अविचारी हो उठा। मेरे जीवन का वह भयानक परिवर्तन बड़े वेग से आरम्भ हुआ। कुलसम उस कष्ट को सहन करने के लिए जीवित न रह सकी। उस दिन जब गोली चली थी तब कुलसम के वहाँ जाने की आवश्यकता न थी। मैं सच कहता हूँ बाबूजी वह आत्महत्या करने का उसका एक नया ढंग था। मुझे विश्वास होता है कि मैं ही इसका कारण था। इसके बाद मेरी वह सब उद्दण्डता तो नष्ट हो ही गई जीवन की पूँजी जो मेरा निज का अभिमान था-वह भी चूर चूर हो गया। मैं नीरा को लेकर भारत के लिए चल पड़ा। तब तक तो मैं ईश्वर के सम्बन्ध में एक उदासीन नास्तिक था किन्तु इस दुख ने मुझे विद्रोही बना दिया। मैं अपने कष्टों का कारण ईश्वर को ही समझने लगा और मेरे मन में यह बात जम गई कि यह मुझे दण्ड दिया गया है।

बुड्ढा उत्तेजित हो उठा था। उसका दम फूलने लगा खाँसी आने लगी। नीरा मिट्टी के घड़े में जल लिए हुए झोपड़ी में आई। उसने देवनिवास को और अपने पिता को अन्बेषक दृष्टि से देखा। यह समझ