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पृष्ठ:आँधी.djvu/५४

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दासी
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दासी तो उसका मुहँ चूम लेती। कितना प्यार होगा उसके छोटे-से हृदय मालो ये पाच दिरम मुझे कल राजा साहब ने इनाम फ दिए हैं। इहें लेते जाओ । देखो उससे जाकर भेंट करना। फीरोजा की आखों मे आसू भरे थे तब भी वह जैसे हँस रही थी। सहसा वह पाच धातु के टुकड़ों को बलराज के हाथ पर रख कर झाड़ियों में घुस गई । बलराज चुपचाप अपने हाथ पर के उन चमकीले टुकड़ों को देख रहा था। हाथ कुछ झुक रहा था । धीरे धीरे टुकड़े उसके हाथ से खिसक पडे ।- वह बेठ गया—सामने एक पुरुष खड़ा हुआ मुस्करा रहा था।

बलराज राजा साहब 1-जैसे श्राख खोलते हुए बलराज ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया। में सब सुन रहा था । तुम हि दुस्तान चले जाओ भी तुमको यही सलाह दूंगा । कि तु एक बात है। वह क्या राजा साहब १ मैं तुम्हारे दुख का अनुभव कर रहा हूँ। जो ब ते तुमने अभी फीरोजा से कही हैं उह सुनकर मेरा हुत्य विचलित हो उठा है । किंंतु क्या करू । मने श्राकांक्षा का नशा पी लिया है । वही मुझे वेबस किये है| जिस दुःख से मनुष्य छाती फाड़कर चिल्लाने लगता हो सिर पीटने लगता हो वसी प्रतिकूल परिस्थितियों म भी मैं केवल सिर नीचा कर चुप रहना अच्छा समझता हूँ। क्या ही अच्छा होता कि जिस सुख मे पान दातिरेक से मनुष्य उमत्त हो जाता है उसे भी मुस्करा कर टाल दिया करूँ । सो नहीं होता। एक साधारण स्थिति से मैं सुल्तान के सलाहकारों के पद तक तो पहुँच गया हूँ। मैं भी हिदुस्तान का ही