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पृष्ठ:आँधी.djvu/७९

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आँँधी


गोविदराम ने पूछा-बूटी छोड़ दिया इसी से तुम्हारी यह दशा है।

उस समय घीसू सोच रहा था-नंदू बाबू की बीन सुने बहुत दिन हुए वे क्या सोचते होंगे।

गोविंदराम के चले जाने पर घीसू अपनी कोठरी म लेट रहा । उसे सचमुच ज्वर आ गया।

भीषण ज्वर था रात भर वह छटपटाता रहा। बिंदो समय पर श्राई मठी के चबूतरे पर उस दिन घीसू की दूकान न थी। वह खड़ी रही। फिर सहसा उसने दरवाजा दकेल कर भीतर देखा-घीसू छट पटा रहा था। उसने जल पिलाया।

धीसू ने कहा-बिंदो। क्षमा करना मैंने तुम्हें बड़ा दुख दिया । अब मैं चखा लो यह बचा हुआ पैसा ! तुम जानो भगवान कहते-कहते उसकी आखें टैंग गई। विंदो की आँखों से प्रासू बहने लगे। वह गोविंदराम को बुला लाई ।

बिंदो अब भी बची हुई पूजी से पैसे की दूकान करती है । उसकी यौवन रूप रंग कुछ नहीं रहा। बस रहा-थोड़ा-सा पैसा और बड़ासा पेट--और पहाड़ से आनेवाले दिन