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पृष्ठ:आँधी.djvu/८१

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७४
आँँधी

७४ आँँधी अवाक होकर देखने लगा वही बुडदा ! कितु आज अकेला था। मैंने उसे कुछ देते हुए पूछा-क्योंजी आज वह तुम्हारा लड़का कहा है?

बाबूजी भीख में से कुछ पैसे चुरा कर रखता था वही लेकर भाग गया न जाने कहा गया!-उन फटी आँखों से पानी बहने लगा। मैंने पूछा-उसका पता नहीं लगा ? कितने दिन हुए।

लोग कहते है कि वह कलकत्ता भाग गया | उस नटखट लड़के पर क्रोध से भरा हुश्रा मैं घाट की ओर बढा वहाँ एक व्यासजी अवण चरित की कथा कह रहे थे। मैं सुनते सुनते उस बालक पर अधिक उतेजित हो उठा । देखा तो पानी की कल का धुश्रा पूर्व के आकाश में अजगर की तरह फैल रहा था।

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कई महीने बीतने पर चौक में वही बुढढा फिर दिखाई पड़ा उसकी लाठी पकड़े वही लड़का अकड़ा हुमा खड़ा था। मैंने क्रोध से पूछा-- क्यों बे तू अधे पिता को छोड़ कर कहा भागा था? वह मुस्कुराता-हुआ बोला-बाबूजी नौकरी खोजने गया था। मेरा क्रोध उसकी कर्षय बुद्धि से शात हुआ। मैंने उसे कुछ देते हुए कहा-खड़के तेरी यही नौकरी है तू अपने याप को छोड कर न भागा कर ।

बुड्दा बोल उठा-बाबूजी अब यह नहीं भाग सकेगा इसके पैरों में बेड़ी डाल दी गई है। मैंने घणा और आश्चर्य से देखा सचमुच उसके पैरों म बेड़ी थी । बालक बहुत धीरे धीरे चल सकता था मैने मन ही मन कहा-हे भगवान् भीख मँगवाने के लिए पेट के लिए बाप अपने बेटे के पैर में बेड़ी भी डाल सकता है और वह नटखट फिर भी मुस्कुराता था | संसार तेरी जय हो। मैं आगे बढ गया।

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