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पृष्ठ:आँधी.djvu/८४

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व्रत भंग

करता है-ठुकराता है । मैं अपनी उसी बात को दुहराता हूँ कि हम लोगों का अब उस रूप में कोई अस्तित्व नहीं।

वही सही कपिंजल ! हम लोगों का पूर्व अस्तित्व कुछ नहीं तो क्या हम लोग वैसे ही निर्मल होकर एक नवीन मैत्री के लिए हाथ नहीं बढ़ा सकते ? मैं आज प्रार्थी हूँ।

मैं उस प्रार्थना की उपेक्षा करता हूँ। तुम्हारे पास ऐश्वर्य का दर्पण है तो मेरी अकिश्चनता कहीं उससे अधिक गर्व रखती है।

तुम बहुत कटु हो गये हो इस समय । अच्छा फिर कभी न अभी न फिर कभी । मैं दरिद्रता को भी दिखला दूँगा कि मैं क्या हूँ। इस पाखण्ड संसार में भूखा रहूँगा परंतु किसी के सामने सिर न झुकाऊँगा । हो सकेगा तो संसार को बाध्य करूँगा झुकने के लिए। कपिझल चला गया । नन्दन हतबुद्धि होकर लौट आया । उस रात को उसे नींद न आई।

उक्त घटना को बरसों बीत गये । पाटलीपुत्र के धनकुबेर कलश का कुमार नन्दन धीरे-धीरे उस घटना को भूल चला। ऐश्वर्य का मंदिरा विलास किसे स्थिर रहने देता है ? उसके यौवन के संसार में बड़ी-बड़ी आशाएँ लेकर पदार्पण किया था। नन्दन तब भी मित्र से वंचित होकर जीवन को अधिक चतुर न बना सका।

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राधा तू भी कैसी पगली है ? तूने कलश की पुत्र वधू बनने का निश्चय किया है आश्चर्य ।

हाँ सहादेवी जब गुरुजनों की आज्ञा है तब उसे तो मानना ही पड़ेगा।