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पृष्ठ:आँधी.djvu/९१

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आँँधी

पक्की छत पर बैठी अभी य दृश्य देख रही हो। आज से मैंने अपना अंश छोड़ दिया । तुम लोग जब तक जी सको जीना ।

सहसा नीचे माफ कर राधा ने देखा एक नाय उसकी वातायन से टकरारी है और एक युवक उसे वातायन के साथ दृढता से बाध रहा है।

राधा ने पूछा- कौन है ?

नीचे सिर किये नदन ने कहा-बाढ पीड़ित कुछ प्राणियों को क्या आश्रय मिलेगा? अब जल का क्रोध उतर चला है। केवल दो दिन के लिए इतने मरनेवालों को आश्रय चाहिए ।

ठहरिए सीढी लटकाई जाती है।

राधा और दासी तथा अनुचर ने मिल कर सीढी लगाई। नदन विवर्ण मुख एक एक को पीठ पर लाद कर अपर पहुँचाने लगा। जब सब अपर आ गये तो राधा ने श्राकर कहा-और तो कुछ नहीं है केवल द्विदलों का जूस इन लोगों के लिए है ले पाऊँ ?

नदन ने सिर उठा कर देखा राधा । वह बोल उठा--राधा ! तुम यहीं हो ?

हा स्वामी मैं अपने घर म हूँ । गृहिणी का कर्तव्य पालन कर रही हूँ।

पर मैं गृहस्थ का कर्तव्य न मालन कर सका राधा पहले मुझे क्षमा करो।

स्वामी यह अपराध मुझ स न हो सकेगा । उठिए आज आप की कर्मण्यता से मेरा ललाट उज्ज्वल हो रहा है। इतना साहस कहाँ छिपा था नाथ!

दोनों प्रसन्न होकर काव्य म लगे। यथा सम्भव उन दुखियों की सेवा होने लगी।