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पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१८१

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[ तीसरा
आदर्श महिला

अनोखा काम देखो तो तुरन्त आकर मुझसे कहना। सखी! न जाने क्यों, तुम्हारे मुँह से सारथि की बात सुनने के समय से मेरा चित्त अशान्त हो रहा है मानो मेरी टूटे तारों को प्रेम-वीणा नई तान से सुर दे रही है। केशिनी! जाओ, देर मत करो।

कुछ देर बाद, केशिनी ने पति के विरह से व्याकुल दमयन्ती के कमरे में लौटकर कहा---राजकुमारी! सारथि की अजब लीला देखकर मैं चकरा गई हूँ। मैंने पहले और कभी ऐसे विचित्र मनुष्य को नहीं देखा था। दुनिया के सभी पदार्थ तो उनके नौकर से हैं। सखी! मैंने देखा कि उनके ताकने से ख़ाली घड़ा जल से भर जाता है, बिना ही आग के सूखा तृण और काठ जल उठता है। सखी! और ज़ियादा क्या कहूँ, सारथि के हाथ का मसला हुआ फूल कुम्हलाने या सूखने के बदले और भी खिलकर महकने लगता है। सखी! ऐसी अचरज-भरी बात मैंने कभी नहीं देखी थी। यह आदमी क्या कोई जादूगर है या प्रत्यक्ष देवता?

दमयन्ती ने तड़फड़ाकर कहा--"सखी! मैं सब समझ गई। मेरा सारा सन्देह दूर हो गया---वे देवता ही हैं। मेरे हृदयराज के वही राजा हैं। सखी! यह तो जाड़े से ठिठुरती हुई धरती पर वसन्त का सुखदायी स्पर्श है; रेगिस्तान की तपी हुई भूमि में मन्दाकिनी की शीतल धारा है; आमों के उजड़े हुए बाग में कोयल की मीठी कुहुक है।" केशिनी के अचरज का ठिकाना न रहा।

इसके बाद दमयन्ती ने माता-पिता की सलाह से, सारथि के वेष में आये हुए बाहुक को---पहचानने के निमित्त---अपने कमरे में बुलाने के लिए केशिनी को भेजा।

केशिनी ने जाकर राजकुमारी की इच्छा प्रकट की तो वह