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कर्तव्य स्थिर किया था उसे प्रिय पाठक गत प्रकरणों में पा
चुके हैं। शेष आगामी पृष्ठों में पा लेंगे। आज से उनकी
यात्रा में, केवल काशी ही में एक और साथी बढ़ गया! इस
यात्रा-पार्टी में पंडित दीनबंधु भी संयुक्त हुए।
लोग कहते हैं कि काशी शिवपुरी है। वास्तव में शिवजी
की ही प्रधानता है परंतु मेरी समझ में काशी शिवपुरी
है, विष्णुपुरी है, दुर्गापुरी है, लक्ष्मीपुरी है और गणेशपुरी,
भैरवपुरी है। जैसा जो अधिकारी है उसके लिये भला और
बुरा सब तरह का मसाला मौजूद है। वहाँ यदि शैवों की
संख्या अधिक है सो वैष्णवों की भी कम नहीं। यदि गणना
करने का कोई सिलसिला हो तो मेरी समझ में समान अथवा
लगभग ही निकलेगी। भगवान् शंकर ही जब वहाँ साक्षात्
निवास करते हैं तब यदि काशी शिवपुरी हो तो आश्चर्य क्या,
किंतु विष्णु स्वामी संप्रदाय के प्रवर्तक भगवान् बल्लभाचार्यजी
ने जब वहाँ ही से गोलोक को प्रयाण किया है, जब वहाँ ही
श्रीगोपाललालजी का, श्री मुकुंदरायजी का और ऐसे कई एक
मंदिर विद्यमान हैं तब वैष्णवों के लिये वास्तव में विष्णुपुरी है।
यों तो भगवान् की सबही मूर्तियाँ वैष्णवों के लिये इष्ट है किंतु
जब श्रीमुकुंदरायजी नाथद्वारे में विराजमान श्रीगोबर्द्धननाथजी
के गोद के ठाकुर है तब उन पर लोगों की विशेष रुचि
होनी चाहिए। शिव विष्णु की एकता के विषय में प्रियानाथजी
का जो सिद्धांत था उसे वह प्रयागराज में गौड़बोले से