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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१८१

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भासमीर गारमे, फुललोग शाही मगविष प्रादि लिए हो । सिट का बरणार याशिए और ईपर्यो न था। पादप से प पे में और जो लोग वहा पेचे भय से पर-पर पर, एक तो वास्या, हरेममोर शरीर, वीसरेरोगकौमे पारों तरफ निरमास- पाव अविरमात ऐठी हासत में तमाम शिखान के बारणारा विवक्षित बाना स्वामाविकीया। पोषीरी देर में एग ने प्राकर भमयी की। पाने में फेर किया । पारा मी गुरमे में भरा । पापणा की मागणी की कुछ भी परमार न कर पापीमा वनकर खड़ा हो गया पर वाय गा। दाय ने मा-"पुर में मुमे विससिए व विता" अरपार ने रखाई सेामान शिप्रे और मिर्जा गया पनिह भी मा बार्य वोm इपमही में मर में गवा बसिहोर पारधरा पुलेमान : पाने बना री। नो मापन बार अपने सपनों पर करो गए। बादशाह ने मि गमावसिकी तरफरल रोमा- "पाप माम रेलमारे दानिशमन बीपदोसा सादुल्लाहौधे किती मे मरवा गाथा साप अपनी पवा सगा dtm या गया में कोई साब नहीं दिया। सिर मीषा लिए तो रहे। बारसार मे सर मा-"मापान र एशिश मा में शरिभालिम पा। स्वमत प्रदमाम बोझा ठाए था। माम उस पिना सनत उगमगा रही है। यदि आप उस भूनी प्रेधनते तोपवायए मापारे शेरो इम उसे मार न करेंगे। फिर पानी चाहे हमारा मसी सोनो पारकर उतने सावधान मनि करो पाप की मोर देता। दाप मे पी नही मिहारापबमीम की हर देशवार। बापणार मेरि दाग भोर मम्निमप मेत्रों से पराम हरपती पान से मा-