पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९५

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प्रासमयीर बादशाह बोषित कर दिया और अपने नाम पर उसने प्रसर मातिगदीन मुहम्मद, वीतय तैमूर, सय सिमर शायमानीप नया सिवाय पारन विमा। इसके बाद उसने चालीस हजार सवार भोर जगमय मेद वाल पैरल लेकर गार से शरिया । रमय पर पैर रससे हुए उसने मा-या वपन या दस्ता 'गुवा बड़ी उमंग में था। उसके पात उमा सेना वो पी ही बितमें भालादपुर्तगी तोपची थे । साय दीवाना भी पेरामार पा। यातित उसमे बंगाल, बिहार और उगीसा बीमारों और नगरों को दूरकर मा की थी, हवी इरादे से कि एक दिन मुझे अपने बाहुबल से रिशी पर बीत सेना पड़ेगा। भागरे के दरबार में शुमारे अनेक पोलो मिा पे भोर इन मियों पर उसे पूरा मरोसा पा। वे द ईरानी पे और शिया धर्म माननेवाले थे । गुबा में भी अपना धर्म शिक्षा मणार कर दिया था, पर पासिक उतभी अपने व रोठो को पप परमेश्रीवासपी। उहम पत्रमहार पर पबधानी में इन अमीर दोस्तों से पारी पवा या, उसे उन दोस्तों पर अपनी प्रबह सेना से मी म्पारा मरोता था, परन्तु इस भरपर्णीचे अपने पुरमनों श्री कच मी चिन्ता न पी। इस मामले में बड़ा पौरमा पा। उतने उन सब प्रमीप्रपनी मबर में या शिवा पायो पाप- पाती मथे। इस गुट के मेवा बबीता गामा हो तो उसने से मरवा दी राहा पा, बाकी सब हरदारों को उठने मीरहमता दुम पापकर रविन भोर परेशदिवा पा। महम वास्तव में उसने बड़ी हुमिमानी और दूरपशिवा लिया था। इन अमीरों में तनाव खो, महाबतौर प्राणतता पापोवाबारी बाके मत दार । ताप ही बीर मी पे। इस प्रबटर पर प्रागरे में बाहर नहीं माना पारते थे। स्पोरिदे बानते थे कि उनी के मोसे,