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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९८

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• ४१: पाहादुरपुर का युद्ध दोनों सेनाएँ तेबी से बढ़ती हुई एक दूसरे के निकटवी गली पापी पी। ० के बीच में मी मिर्यायमा निरन्ता गुमाको पापस और पाने की सलाह देते पाते थे। पर गुमा टयार ने प जगार बुध पा और बिना गम के पत्रो सपनाम दिए बदाही पता मावा पा । मुरीमान सिह मी परेपो में या और उसने सेना को प्राण दे रखी थी कि पोंदी पुरमन की सेना ने पुस्त गोलागरी शुरु कर दो। उसने सेना के प्रम माम में अपना वोपचाना रमपोरा पा । उसके प्रमान तोपचीन नाम मुमवार को मा। एस विक्षर और पो लगन का प्रारमी पा! उपर निशाना विमाश सखा पाया था। पाठीठ पाषा शास्त्रारे जमने गेम पम्तिा पा--- -"ल्या प्रमावासा पाहा ही गाबा मुधवान गुना कीमे फरदर में दो पाप t" मुसवान सपा से गुरु मुस रोवावा मित्रो पब और रिवर सराठीन मान से भागे करो। शुभम को मारमा यसरे मिज रही थी पिारी सेना दिन रित निकटती। अन्त में बनारत से पॉच मोस उचर बहादुरपुर निस एक पहाड़ी पर उम्मै पो मारी और शाही सेना से यार लेने परिषर हो गया। दूसरे दिन पोरस गप ही साप पनों सेनानो मे एस दूसरे प्राम-सामने देखा। दरम्व ही रोमान ने मोये रणने की माग है। देखते-देशठे पाँचबातावरण मनन और धर से मर गा, परम पर अन्नापी बाई पोलिकिनी पति