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पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/२७

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पालग-का मेरे कहे वारी' तू निहारी जो विहारी तन. .. हेरे ज्योरे हठतु हेतु एतो फत छोजिये। जाकी.बास वेधै मन फूल देख्यो चाहे जनु। '; हेरे ते कुसुम जानि हूँ कर लीजिये ॥२५॥ यनितारी यनि धनवारी बोली धन धन,': श्रवनन फरि येनु याजे पनी बानी सों। माननीन मुचे मानु पते मान को है 'मानो, मेरी न मनाई माने मोहन की मानी सों। पालम सुरति सुख कहा जाने का सौ फहै, कहे रैन थीति जैहै : एक ही कहानी सों। पान सोऽय पान जोरि प्रानपति प्यारे संग,। ऐसे मिलि प्यारी जैसे पानी मिले पानी सो ॥२६॥ मोहनि चदाइ फै रिसाइ नैन नाइ रही, । सांस हं न चले जड़ जदपि कियो है नु। कहै कवि आलम यंचन ऐधि वैचि मनु, काहा भयो जो पै हठु फोनो है रॉक को धनु। थाही को घरजि डोले येसरि को मोती प्यारी, . है , जेहि लागि डोल्यो डोल्यो फिरत लाल को मनु । याकी गलकनि अधरनि पर छाई माई, . • कहाँ है रखाई तू तो खो हसति जनु ॥२७॥ १-गारी: जिदारी आऊँ। २-ज्यो- (जीप) मन। -हनन १४ करता है।