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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२०

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& सिरसाकासमर । ४१६ दारे ठाढे मलखाने थे चिट्ठी तुरत दीन पकराय ८४ चढ़ा पिथोराहे सँभराभरि औं यह कहा बनाफरराय ।। किला गिरावें जो सिरसा का तो सब रारि शान्तबजाय ८५ नहीं तो बचिहैं ना संगरमा जो विधि प्रापु बचावें आय ।। लौटि पिथोरा अव जैहै ना सिरसा ताल देय करवाय ८६ मृत्यु आयगै मलखाने के जो नहिं किला देय गिरवाया। लौटि पिथौरा अव जैहै ना नेका टका लेय निकराय ८७ चौंड़ा बकशी पृथीराज का सोऊ कहा संदेशा आय ।। बने जानना मलखाने अब घरमा बैठि रहैं शर्माय ८८ कोने राजा की गिनती मा जो नहि किलादेय गिरवाया। कह्यो संदेशा यह ताहर है सो सुनिलेउ बनाफरराय ८६ मलखे चाकर परिमालिक का सो कस गरि मचाचे आय ॥ दीन बड़ाई हम चाकरको पहिले फौज लीन हटवाय ६० जियति न जाई. अब संगर ते जो विधि आपु बचाई आय ।। कह्यो सँदेशा सब लोगन को धावन बार बार समुझाय ६१ सुनिक बातें ये धावन की क्रोधित भयो बनाफरराय ॥ हुकुम लगायो फिरि सिरसामें बाजन सबै रहे हहराय ६२ बोले मलखे फिरि धावन ते यह तुम कह्यो पिथौरै जाय ।। मारे मारे मुख घावन के धावन द्याव तहाँ समुझाय ६३ यहै बतायो तुम पिरथी ते आवत समरधनी मलखान ।। कसरि न राई चौड़ा ताहर संगर करें दूनहू ज्वान ६४ कीन जनाना हम दोउन का उनके साथ कौन मैदान ।। हमरो संगर पृथीराज को - ना सँभरि आज चौहान ६५ इतना सुनिक धावन चलि के राजे खबरि बतावा आय ॥