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मरम्मत


मिस्टर दिलीप ने मुस्कुरा कर कहा—"तुम्हारी जीजी इस तुच्छ परदेशी का इतना ख्याल करती है—इसके लिए उन्हे धन्यवाद देना।"

दुलारी ने हँसकर और साड़ी का छोर आगे बढ़ाकर कहा "बाबू जी हम गॅवार दासी यह बात नही जानतीं, यह तो आप ही लोग जानें—कहिए तो मै जीजी को बुला लाऊँ आप उन्हें जो कहना हो कहिए।"

दिलीप हँस पड़े। उन्होंने कहा—"तुम बड़ी सुघड़ औरत हो।"

दुलारी ने साहस पाकर कहा—"बाबूजी आप हमे अपने घर ले चलिए, बहूजी की खिदमत करके दिन काट दूँगी।"

दिलीप महाशय ने ज़ोर से हँसकर कहा—"मगर बहूरानी भी तो हों, अभी तो हम ही अकेले हैं।" इस पर दुलारी ने कपार पर मौहें चढ़ाकर कहा—बाप रे, ग़जव है, आप बड़े लोंगो की भी कैसी बुद्धि है। भैया भी क्वॉरे, जीजी भी क्वॉरी, आप भी क्वांरे।"

भूमिका आगे नही चली। गृहिणी ने दुलारी को बुला लिया। रजनी ने सब सुना तो मुस्कुरा दिया।

दोपहर की डाक आई। दुलारी ने पूछा, जीजी की कोई चिट्ठी है। दिलीप ने साहस पूर्वक मासिक पत्रिकाओं तथा चिट्ठियों के के साथ अपनी चिट्ठी भी मिला कर दुलारी के हाथ भीतर भेज दीं और श्रव वह धड़कते कलेजे से परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे।

(५)

पत्र को पढ़कर रजनी पहिले तो तनिक हँसी। फिर तुरन्त हीं क्रोध से थर थर कांपने लगी। पत्र मे कवित्व पूर्ण भाषा मे प्रेम के ज्वार का वर्णन किया गया था। एकाएक उनके मन में जो