सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
दुसरा खण्ड


फ्रांसीसी भी उस के साथ थे तेईसवी मई को उसी जगह लड़ाई हुई। सिराजुद्दोला ने पगड़ी उतारकर मीरजाफरकेपैरों पर रखदी। और कहा कि अब मुसाफ़ कीजिये। लेकिन उसने यही सलाह दी कि आज लड़ाई मौकूफ़ रखिये। फ़ौज पीछे हटा लीजिये कल लड़ेंगे और राय दुल्लभ ने अर्ज की कि हजूर का मुर्शिदाबाद ही तशरीफ़ ले चलना बिहतर है। बसइसी में खेर है।

निदान सिराजुद्दौला की फौज का मुड़ना था। और अंगरेजो का चीतों की तरह हिरनों पर लपकना। सिराजुद्दौलाकी फ़ौज भागी। अंग्रेजों ने छ मील तक पीछा किया यही पलासीकी फ़तह गीया हिंदुस्तान में अंगरेज़ी अमलदारी को नेवजमी।

सिराजुद्दौला के पैर मुर्शिदाबाद में भी न जमे भरोसा तो उसे किसीका थाहीं नहीं और भरोसा इसे तबही सकता जब उस ने किसी के साथ कुछ भलाई की होती। एक बैगमऔरएक खोजा साथ ले कर भागा लेकिन राजमहल के पास एक फ़कीर ने उसे पहचान लिया सिराजुद्दौला ने किसी ज़माने में उस के नाक कान कटवाये थे फक़ीर ने तुर्त वहां के हाकिम से खबर कर दी। वह मीरजाफ़र का भाई था सिराजुद्दौलाको बाँध कर मुर्शिदाबाद भेज दिया मीरजाफर को कुछ किसी कदर रहम आया। लेकिन उसका बेटा मीरननिरायल्थरथा। बे अपने बाप की इतिला के उसकी जान ले डाली। सिराजुद्दौला की उमर तब तक बीस बरस की भी नहीं हुई थी।

ख़ज़ाने की जब मौजूदात ली गयी डेढ़करोडरूपयाशुमार में आया, तो भी अहदनामे के बमुजिब सबके देने को काफ़ी न था। तब यह ठहरा कि आधा तो चुका दिया जावे। और आधा तीन किस्तों में तीन साल के दर्मियान दिया जावे।

काइव को मीरजाफर ने अहदनामे केसिवाय सोलहलाखरुपया और दिया अमीचंद जी फूलेहुये थे। उन्हीं ने अपने हिसाब से अपने हिस्से का रुपया तीस पैंतीस लाख जोड़ रक्खा था जब अहदनामा पढ़ा गया और इन्हीं ने अपना नाम न मना